कहा था-आडवाणी जी के बयान को गलत ढंग से किया गया पेश
नई दिल्ली । बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी को ऊंचाइयों पर पहुंचाया और कांग्रेस केंद्रित राजनीति में दूसरा ध्रुव तैयार किया। इसका श्रेय आडवाणी और अटल बिहारी वाजेपयी को हमेशा दिया जाएगा। यही नहीं दोनों नेताओं की जुगलबंदी ऐसी थी कि आडवाणी को पीएम पद का दावेदार माना जा रहा था, उन्होंने ही अटल जी के नाम का प्रस्ताव रखा था। यही नहीं दोनों नेता जब तक राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहे, उनके संबंधों में मधुरता बनी रही।
बता दें लालकृष्ण आडवाणी जब 2005 में पाकिस्तान गए और मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की जिसके बाद वह घिर गए, तब भी अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका बचाव किया था। यह वह वक्त था, जब आरएसएस नेतृत्व आडवाणी के खिलाफ था और चाहता था कि वे अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें उनसे और इस्तीफा ले भी लिया गया। इस संबंध में जब अटल जी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आडवाणी जी के बयान को गलत ढंग से पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कई सीनियर नेता जैसे सरोजिनी नायडू की भी मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में वही राय थी, जो आडवाणी ने जाहिर की है।
अटल जी ने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने भी हिंदुस्तान की आजादी में भूमिका निभाई थी। यह बात सही है कि उन्होंने बाद में पाकिस्तान की मांग की और उनके विचारों में परिवर्तन आ गया था। उन्होंने कहा था कि जिन्ना पाकिस्तान के जनक थे, लेकिन वह चाहते थे कि भारत के साथ संबंध दोस्ताना बने रहें, लेकिन उनके बाद आने वाले शासकों ने कभी इस कोशिश को आगे नहीं बढ़ाया।
आडवाणी ने मोहम्मद अली जिन्ना की याद में बने मकबरे की यात्रा के दौरान कराची में लिखा था- दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। लेकिन उससे भी कम लोग वे होते हैं, जो इतिहास बनाते हैं। मोहम्मद अली जिन्ना ऐसे ही दुर्लभ शख्सियत थे। इसके आगे जो उन्होंने जिन्ना को लेकर कह दिया था, उस पर जमकर विवाद हुआ था। उन्होंने कहा था- जिन्ना के शुरुआती दिनों में सरोजिनी नायडू ने उन्हें हिंदू मुस्लिम एकता का दूत बताया था। जिन्ना ने पाकिस्तान की असेंबली में 11 अगस्त 1947 को भाषण दिया था, वह क्लासिक है। वह बताता है कि कैसे वह एक सेकुलर देश चाहते हैं, जिसमें हर नागरिक को अपने धर्म के पालन करने का अधिकार हो। एक ऐसा देश जिसमें नागरिकों के बीच आस्था के आधार पर कोई भेद न हो। ऐसे शख्स को मेरी श्रद्धांजलि है।
जिन्ना को सेकुलर बताने वाले बयान पर संघ हैरान था। आडवाणी के राजनीतिक जीवन का भी यह एक अलग ही चक्र था। आडवाणी की 1990 में राम मंदिर आंदोलन के लिए हिंदुत्व वाली छवि थी तो वहीं 2005 में उन्होंने जिन्ना पर बयान दिया और फिर बात हाथ से निकलती चली गई। संघ परिवार इस पर इतना खफा था कि बीजेपी के अध्यक्ष पद से आडवाणी से इस्तीफा ही ले लिया, लेकिन ऐसे वक्त में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी का बचाव करने का प्रयास किया था।