ब्रिटेन ने 1965 में मॉरीशस से छीना था डिएगो गार्सिया द्वीप
नई दिल्ली । जुलाई 2024 में जब अमेरिका ने ब्रिटिश कोर्ट को डिएगो गार्सिया में कैद श्रीलंकाई तमिलों के मामले की सुनवाई करने से रोका तो दुनिया हैरान रह गई थी। इससे पता चला कि अमेरिका के लिए डिएगो गार्सिया कितना अहम है। इसके लिए अमेरिका ने अपने सबसे करीबी दोस्त ब्रिटेन से ही पंगा ले लिया। हालांकि, वह ब्रिटेन ही था, जिसने 1966 में इस द्वीप को 50 साल के लिए अमेरिका को सौंपा था, जिसे 20 साल के लिए बढ़ाने की अनुमति भी शामिल थी। बता दें डिएगो गार्सिया ब्रिटेन का नहीं है, बल्कि उसने 1965 में अपने तत्कालीन उपनिवेश मॉरीशस से छीना था। अब यह छोटा सा द्वीप हिंद महासागर में दो महाशक्तियों के शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बना गया है। इस द्वीप से अमेरिका न सिर्फ चीन को हड़काता है, बल्कि अपने बी-2 बमवर्षक से यमन तक बमबारी करता है।
वर्तमान में ब्रिटेन और मॉरीशस में चागोस द्वीप समूह को लेकर एक समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत ब्रिटेन चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंप देगा, लेकिन डिएगो गार्सिया को नहीं, जो इसी द्वीप का हिस्सा है। डिएगो गार्सिया का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार अपने नौसेना जहाजों और लंबी दूरी के बमवर्षक विमानों के लिए सैन्य अड्डे के रूप में करती रहेगी। अमेरिका-ब्रिटेन का बेस डिएगो गार्सिया में बना रहेगा, जो इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों, भारत और चीन के बीच बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के समय इस समझौते को आगे बढ़ाने में एक अहम कारक है।
हिंद महासागर से अमेरिका और ब्रिटेन का भौगोलिक रूप से कोई संबंध नहीं है। ये दोनों देश हजारों किलोमीटर दूर दूसरे महाद्वीप में स्थित हैं। इसके बावजूद उनका हिंद महासागर के लिए प्रेम कम नहीं हुआ है। हाल की भू-राजनीतिक घटनाओं ने हिंद महासागर के महत्व को और ज्यादा बढ़ा दिया है। यही कारण है कि दुनियाभर के देश हिंद महासागर में मौजूदगी बनाने के लिए आपस में संघर्ष कर रहे हैं। इनमें भारत, पाकिस्तान, चीन से लेकर अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी शामिल हैं। इनके अलावा भी कई छोटे-बड़े देश लगातार अपनी नौसेनाओं को हिंद महासागर के इलाके में गश्त के लिए भेज रहे हैं।
भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को बढ़ा रहा है। सबसे पहले, भारत अपनी समुद्री संपत्तियों को विकसित करने के लिए प्रयास कर रहा है। हाल के वर्षों में मिलने वाले बजट का बड़ा हिस्सा वेतन के बजाय क्षमता निर्माण के लिए खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा, भारतीय नौसेना नए उपकरणों और प्रौद्योगिकी को इंटीग्रेट करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए युद्धपोतों और पनडुब्बियों से लगातार नए हथियारों का परीक्षण किया जा रहा है।