चंदन मिश्र
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) झारखण्ड का एक प्रमुख क्षेत्रीय राजनैतिक दल है, जिसका प्रभाव झारखण्ड एवं ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में है। शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष हैं। झारखंड के लिए इसका चुनाव चिन्ह धनुष और बाण है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना 4 फरवरी 1973 को तीन लोगों बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और एके राय ने मिलकर किया था। इस क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के 52 साल पूरे हो गए। आज झामुमो के पास झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में सर्वाधिक 34 सीटें हैं। लोकसभा में तीन और राज्यसभा में तीन सीटें झामुमो के खाते में है। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। शिबू सोरेन अभी भी झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं। लेकिन झामुमो के संस्थापकों में दो नेता बिनोद बिहारी महतो और एके राय गुजर चुके हैं। शिबू सोरेन की हाथों में झामुमो की कमान जरूर है, लेकिन पार्टी का व्यवहारिक नेतृत्व कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ही कर रहे हैं। शिबू सोरेन की शारीरिक अस्वस्थता उन्हें भाग दौड़ करने से रोक रही है। वैसे शिबू सोरेन के समकालीन पार्टी के कई प्रमुख नेता आज सांसद और विधायक हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन झारखंड अलग राज्य के लिए किया गया था। इसके लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लंबा संघर्ष किया। शिबू सोरेन सहित कई नेता अलग राज्य की लड़ाई लड़कर यातनाएं झेली, संघर्ष किया और जेल तक गए। वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा का उद्देश्य पूरा हो गया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने आंदोलन में पहले बिहार से सटे चार राज्यों बंगाल, ओड़िशा और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों को मिलाकर वृहद झारखंड राज्य की मांग रख दी। यह आंदोलन लंबा चला। कांग्रेस के केंद्रीय सरकार ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के आंदोलन को शुरू में संज्ञान में किया। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह के स्तर पर झारखंड मामले पर एक समन्वय समिति का गठन किया गया। केंद्रीय सरकार ने इस समन्वय समिति के नेताओं के साथ कई दौर की वार्ता की। लेकिन झारखंड पृथक राज्य की मांग को सैद्धांतिक रूप से मानने से इंकार कर दिया। केंद्र सरकार ने केंद्र शासित राज्य की तरह झारखंड स्वायत्त शासी परिषद (जैक) के गठन की मंजूरी दे दी। झारखंड आंदोलनकारी नेताओं ने इसे आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी और कांग्रेस सरकार के इस राजनीतिक झुनझुने से बहुत खुश हो गए। शिबू सोरेन को जैक का अध्यक्ष तथा सूरज मंडल को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया। शेष सभी राजनीतिक दलों के 180 नेताओं को इसका सदस्य (पार्षद) बनाया गया। लेकिन यह जैक झारखंड के लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाफी था। 30 जुलाई 1995 को जैक का गठन हुआ था, जो झारखंड पृथक राज्य बनने के बाद विलोपित हो गया।
इसी बीच 1993 में सांसद रिश्वत कांड हुआ, जिसमें नरसिंहराव की कांग्रेस सरकार को बचाने के लिए झामुमो के चार सांसदों पर रिश्वत लेने के आरोप लगे। चार सांसदों के नाम जोरदार ढंग से उछले और यह मामला जांच के बाद देश की जनता के सामने आया।
झामुमो का राजनीतिक सफर चलता रहा। झारखंड राज्य का गठन वर्ष 2000 के नवंबर महीने में हुआ। उस समय केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार चल रही थी। उसी साल नवंबर महीने में तीन नए राज्यों का उदय हुआ। बिहार से अलग होकर झारखंड, मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ और उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बने। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां भाजपा के नेतृत्व में पहली सरकार बनी। झारखंड मुक्ति मोर्चा भले ही विपक्ष में रहा लेकिन उसकी भूमिका बहुत अहम रही।
2005 में झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में सरकार बनी जरूर, लेकिन यह सरकार 11 दिनों तक ही चली। बहुमत सिद्ध नहीं कर पाने की वजह से मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को पद छोड़ना पड़ा। लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलती रही। 2005 से 2009 के बीच चार सरकार बनी। इसमें दो बार शिबू सोरेन ही मुख्यमंत्री बने। लेकिन इसी पांच साल के अंदर सबसे बड़ी राजनीतिक घटना हुई, बतौर मुख्यमंत्री शिबू सोरेन 2009।में हुए एक उपचुनाव में विधानसभा की तमाड़ सीट से हार गए और उनकी सरकार गिर गई। 2009 में विधानसभा चुनाव के बाद जो परिणाम आया, उसमें झामुमो और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई। शिबू सोरेन तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार के पक्ष में बतौर सांसद समर्थन देकर भाजपा को नाराज कर दिया। भाजपा ने झामुमो सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार को गिरा दिया। इसके बाद झारखंड में राष्ट्रपति शासन लग गया।
2011 में भाजपा ने दुबारा झामुमो के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस बार शिबू सोरेन की जगह हेमंत सोरेन सरकार में उप मुख्यमंत्री की हैसियत से शामिल हुए। सरकार के मुखिया भाजपा के अर्जुन मुंडा थे। लेकिन झामुमो ने 2013 में भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दिया। फिर कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर झामुमो नेतृत्व की सरकार बना ली। फिर 2014 विधानसभा चुनाव आया। भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी और पूरे पांच साल तक चली। 2019 में झारखंड विधानसभा के चुनाव हुए और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बन गई। झामुमो के साथ कांग्रेस, राजद और वामदल शामिल हुए। झामुमो ने अपने पूरे कालखंड में 2019 में सबसे बेहतर उपलब्धि हासिल करते हुए 30 सीटें हासिल की।
2019 से 2024 तक झामुमो के नेता हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार चली। इस बीच हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोप में ईडी की तरफ से गिरफ्तार किए गए। करीब पांच महीने से ज्यादा समय तक हेमंत सोरेन जेल में रहे। इस बीच 2024 का लोकसभा चुनाव हुआ। हेमंत सोरेन के जेल में रहने के दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन झामुमो की नई नेता बनकर उभरीं। उन्होंने पार्टी में नई जान फूंक दी है। कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की असली सहायक बनकर सामने आई हैं। इस बीच 2024 विधानसभा के गांडेय में हुए उपचुनाव जीतकर कल्पना सोरेन विधायक भी बन गईं। अभी झामुमो की वह एक मजबूत स्तंभ बन चुकी हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने 34 सीटें जीतकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। आज एक बार फिर झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो, कांग्रेस ,राजद और वामदल की गठबंधन सरकार काबिज हो गई। हेमंत सोरेन एक ताकतवर राजनेता बनकर उभरे हैं।
इस कालखंड में झामुमो के कुछ पुराने और विश्वस्त साथी चंपई सोरेन, लोबिन हेंब्रम, सोरेन परिवार की वरिष्ठ सदस्य सीता सोरेन झामुमो से अलग हो गए। वहीं कई नए साथी झामुमो से जुड़े और नई राजनीतिक राह बनाई। झामुमो का राजनीतिक कारवां बढ़ता जा रहा है। एक ऊर्जावान और नौजवान नेतृत्व के साथ झामुमो राजनीति का नया अध्याय लिखने की ओर निरंतर आगे बढ़ रहा है। झामुमो निर्विवाद रूप से झारखंड का एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बनकर अपना प्रभाव पैदा कर चुका है।