अशोक कुमार
मंगलवार को कश्मीर घाटी के पहलगाम में आतंकियों ने जिस तरह से निर्दोष पर्यटकों को उसका धर्म पूछकर तथा उसकी शिनाख्त कर उनकी निर्मम हत्या की है, वह इस सदी की सबसे क्रूर और फिरकापरस्त घटना मानी जाएगी। भारत ही नहीं पूरे अंतरराष्ट्र्रीय जगत में इस हैवानियत की सबों ने निंदा की है। दुनिया में रहने वाले करोंड़ों सहनशील हिंदू समुदाय में व्यापक आक्रोश है। जम्मू विवि के आक्रोशित छात्रों ने ठीक ही कहा है की अब पाकिस्तान के साथ वार्ता नहीं, ठोस कार्रवाई करने की जरुरत है। देहाती कहावत है की लात के देवता बात से नहीं सुनते हैं। इतिहास गवाह है की पाकिस्तान में प्रशिक्षित और उसके धनबल से संचालित आतंकी संगठन पिछले कई वर्षो से कश्मीर में हजारों निर्दोष लोगों की हत्या कर आतंकवादी राज्य कायम कर चुके थे। वहां की सरकारें आतंकवादियों के सामने पंगु साबित हो चुकी थी। इसी बीच केंद्र में मोदी की सरकार बनने के बाद धारा 370 हटाकर पूरे कश्मीर में अमन चैन का शासन स्थापित किया गया है। लेकिन मंगलवार की घटना ने यह साबित कर दिया है की वहां की अमर अब्दुला की सरकार आतंकवादियों पर नियंत्रण लगाने में असफल साबित हो रही है। ऐसे हालात में यह जरुरी है की आतंकवादियों के गढ़ में घुसकर भारत सरकार को एक और सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए इस कार्य में भारत सरकार को अंतरराष्ट्र्रीय समुदाय का सर्मथन मिलेगा।
खुफिया तंत्र की विफलता
मंगलवार की घटना ने यह साबित कर दिया है की जम्मू कश्मीर में कार्यरत केंद्रीय खुफिया एजेंसी, राज्य खुफिया एजेंसी व सेना की खुफिया एजेेंसी अपने कामों में पूरी सक्रियता नहीं दिखा पा रही है यही कारण है की आतंकवादी आज भी जम्मू कश्मीर में सक्रिय है। मालूम हो की इन खुफीय एजेंसियों पर प्रतिवर्ष जनता की गाढ़ी कमाई का करोंड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। क्या खुफिया एजेंसियों के अफसर जवाब दे पाएंगे की उनके रहते समय से पूर्व आंतकियों के घाटी में प्रवेश की सूचना वहां की पुलिस और सेना को क्यों नहीं मिल सकी? क्या खुफिया एजेंसियों के अफसर इन आतंकवादियों से मिले हुए हैं? गृह मंत्री अमित शाह का तत्काल कश्मीर पहुंचना और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का विदेश यात्रा अधूरा छोड़कर वापस आ जाना यह सकेंत देता है की भारत सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। भारत की जनता आशा भरी नजरों से यह देख रही है की भारत सरकार कब और किस तरह का करारा जवाब आतंकवादियों को पनाह देने वाली पाकिस्तान को देगी? । गांधीजी ने अंग्रजों के अत्याचार से उबकर 8 अगस्त 1942 को च्च्करो या मरोज्ज् का नारा दिया था। यह नारा अंग्रेजों को भारत छोडऩे के लिए एक आखिरी आवाह्न था। क्या हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी गाधी जी के इस नारे से प्ररेणा ग्रहण करते हुए कोई ठोस कदम उठाएंगे ताकि अंग्रेजों की तरह आतंकवादी भी सदा के लिए कश्मीर से भागकर अपने आका के मुल्क में चले जाएं।