नई दिल्ली । चारधाम की पवित्र यात्रा में बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्रा भी शामिल है। केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड की ऊंची हिमालय चोटियों पर स्थित है। जो न केवल पौराणिक बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अहम स्थान माने जाते हैं। यह लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि चार धाम में की गई यात्रा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वहीं पुराणों में केदारनाथ और बद्रीनाथ को लेकर आने वाले समय में बहुत ही हैरान कर देने वाली भविष्यवाणी की गई है जिसमें लिखा है कि दोनों धाम एक समय पर लुप्त हो जाएंगे और सामान्य लोगों का इन तीर्थ तक पहुंचना असंभव हो जाएगा। पुराणों में कहा गया है कि ऐसा तब होगा जब नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे। इतना ही नहीं गंगा भी शिव की जटाओं के रास्ते से वापस ब्रह्मा के कमंडल में लौट जाएगी। क्या सचमुच में ऐसा होगा, ऐसा कब होगा और अगर ऐसा होगा तो उसके बाद फिर क्या होगा यह एक प्रश्न मन में उभरता है?
“बहुनि सन्ति तीर्थानी दिव्य भूमि रसातले। बद्री सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यतिः॥”
इस श्लोक का अर्थ है- स्कंद पुराण के इस श्लोक के मुताबिक बद्रीनाथ जैसा पवित्र तीर्थ और कहीं नहीं है। पुराणों के मुताबिक कलयुग के प्रथम चरण में ऐसा समय आएगा जब यह तीर्थ अदृश्य हो जाएगा। ऐसा करीब साढ़े पांच हजार वर्ष बाद होगा। भविष्यवाणी के बाद से यह अवधि अब पूरी हो चुकी है। भविष्यवाणी में यह भी कहा गया है कि इस तीर्थस्थल के अदृश्य होने से पहले कुछ संकेत नजर आने लगेंगे, जिसमें पहला संकेत होगा जोशीमठ में विराजमान भगवान नरसिंह देव के हाथ विग्रह से अलग हो जाएंगे। मंदिर के पुजारी भी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में भगवान की उंगलियां पतली होने लगी है। जब ऊंगलियां हाथ से अलग हो जाएंगी तब ब्रदीनाथ यह स्थान छोड़ देंगे और भविष्य में केदारनाथ और बद्रीनाथ के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।
केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के अदृश्य होने के बाद भविष्य केदार और भविष्य बद्री भक्तों का नया धाम होगा। भविष्य बद्री जोशीमठ से करीब 25 किलोमीट की दूरी पर है। जब बद्रीनाथ धाम नहीं रहेगा, तब भविष्य बद्री में विष्णु को नरसिंह रूप में पूजा जाएगा। वहीं भविष्य केदार भी जोशीमठ क्षेत्र में स्थित है। यहां एक शिवलिंग और माता पार्वती की प्रतिमा है। आने वाले समय में यह ऐसा स्थान होगा जहां भविष्य में शिव की पूजा की जाएगी। मान्यता है कि इसी क्षेत्र में आदि शंकराचार्य ने भी तपस्या की थी।
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