अशोक कुमार
उडिशा एवं झारखंड की मीडिया में अब यह खबर पुरानी हो चुकी है कि उडिशा के महामहिम रघुवर दास सक्रिय राजनीति में लौटकर विधानसभा का चुनाव लडऩाा चाहते हैं। सरयू राय के जदयू में शामिल होने तथा जमशेदपुर पूर्वी सीट को एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा के लिए छोड़कर जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लडऩे पर राजी हो जाने से इस संभावना को बल मिला है किे रघुवर दास भाजपा अलाकमान को राजी कर अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार वे भाजपा अलाकमान के समक्ष इच्छा व्यक्त कर चुके हँै कि उन्हें सार्वजनिक जीवन से इतर राजभवन रास नहीं आ रहा है। अत: उन्हें सक्रिय राजनीति में लौटने की अनुमति दी जाय। पिछले महीने जब महामहिम रघुवर दास दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए राज्यपाल पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी तो श्री शाह ने उन्हें राज्यपाल बने रहने की सलाह दी थी लेकिन असम के राज्यपाल हिमंत विश्व शर्मा के राजभवन में रघुवर दास से मुलाकात के बाद परिस्थितियां बदली हैं। श्री शर्मा ने केन्द्रीय नेतृत्व को यह सलाह दी है कि रघुवर दास का उपयोग वर्तमान झारखंड विधानसभा के चुनाव में वैश्य व ओबीसी वोटबैंक को भाजपा के पक्ष में करने के लिए किया जाना लाभकारी होगा। भाजपा नेतृत्व किसी भी तरह झारखंड में एनडीए की सरकार बनाना चाह रही है। इसमें महामहिम रघुवर दास का उपयोग उसे लाभकारी लग रही है। अत: इसकी संभावना नजर आ रही है कि महामहिम को राजभवन की चहारदिवारी से निकाल कर भाजपा उन्हें सक्रिय राजनीति में लौटाकर विधानसभा चुनाव में उनका इस्तेमाल कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ऐसा चाहते हैं। लेकिन एक दूसरा पक्ष यह भी है कि महामहिम के सक्रिय राजनीति में लौटने से राज्य में भाजपा के बड़े नेताओं खासकर आदिवासी नेताओं के बीच गुटबाजी बढ़ेगी। झारखंड भाजपा के आदिवासी नेता यह कभी नहीं चाहेंगे कि रघुवर दास की झारखंड की राजनीति में अभी वापसी हो। यदि रघुवर दास की सक्रिय राजनीति में वापसी का रास्ता खुलता है तो यह तय है कि वे अपने पुरानी सीट जमशेदपुर पूर्वी सें चुनाव लडऩा चाहेंगे। इस बार चुनाव लड़ेंगे तो उनकी जीत लगभग सुनिश्चित होगी। और यदि वे चुनाव जीत जाते हैं तो राज्य में एनडीए को बहुमत आने पर वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। यह खतरा भाजपा के आदिवासी नेताओं को खासकर बाबूलाल मरांडी को अभी से दिख रहा है। पिछले महीने जब मैं उडिशा राजभवन गया और महामहिम से मुलाकात के दौरान उनसे यह सवाल किया कि राजभवन के अंदर से लेकर झारखंड और उडिशा की मीडिया में यह चर्चा है कि आप चुनाव लडऩा चाह रहे हैं तो महामहिम ने मेरे इस सवाल पर चुप्पी साधते हुए न तो इसका खंडन किया और न ही इसकी पुष्टि की लेकिन उनके चेहरे का हावभाव यह साफ संकेत दे रहा था कि वे राजभवन की चहारदीवारी के अंदर बहुत खुश नहीं हैं। उनका बार बार जमशेदपुर आना और आम लोगों से मिलना यह संकेत दे रहा है कि वे पुन: सार्वजनिक जीवन में यानि राजनीति में लौटना चाह रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि पार्टी हाईकमान चाहेगी तभी तो ऐसा संभव हो पाएगा। पार्टी के आदेश के खिलाफ वे नहीं जा सकते हैं। देर सबेर ही सही महामहिम का सक्रिय राजनीति में लौटना लगभग तय माना जा रहा है। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को मनाने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। कहवत है राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।