नई दिल्ली । देश की सुरक्षा में दिन-रात मुस्तैद रहने वाले सुरक्षाकर्मी खुद अब सुरक्षित नहीं रह गए, और यह बात सिर्फ बाहरी खतरे को लेकर नहीं, बल्कि उनकी अपनी मानसिक स्थिति को लेकर भी कही जा रही है। दरअसल हाल ही में छत्तीसगढ़ विधानसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट ने चिंता की गंभीर घंटी बजाई है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साढ़े छह साल में 177 सुरक्षाकर्मियों ने आत्महत्या की है, जिनमें सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ और राज्य पुलिस बल शामिल हैं। डिप्टी मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने बीजेपी विधायक अजय चंद्राकर के सवाल पर जानकारी देते हुए सदन को बताया है कि 2019 से 15 जून 2025 तक इन आत्महत्याओं की पुष्टि हुई है। इनमें 26 – सीआरपीएफ, 5 – बीएसएफ, 3 – भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, 1-1 – सशस्त्र सीमा बल, सीआईएसएफ और त्रिपुरा राइफल्स
शेष – छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, विशेष कार्य बल (एसटीएफ), होमगार्ड व अन्य राज्य पुलिस बल शामिल हैं।
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साल आत्महत्या के आंकड़े
2019 – 25
2020 – 38
2021 – 24
2022 – 31
2023 – 22
2024 – 29
2025 (15 जून तक) – 8
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मामला सिर्फ आत्महत्या तक सीमित नहीं
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 18 सुरक्षाकर्मी हत्या की घटनाओं में भी शामिल रहे हैं। इनमें आपसी विवाद के चलते जवानों ने अपने साथियों पर ही गोलियां चला दीं।
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आखिर क्यों हो रही हैं ये घटनाएं?
अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ये घटनाएं क्यों हो रहीं हैं? इस सवाल पर हुई जांचों में सामने आए मुख्य कारणों में पारिवारिक तनाव, आर्थिक व व्यक्तिगत, परेशानियां, अत्यधिक शराब सेवन, मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी, लंबी ड्यूटी और नक्सल प्रभावित इलाकों की तैनाती और आपात गुस्से में लिया गया आत्मघाती कदम प्रमुख है।
विशेषज्ञों की राय: मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लंबी तैनाती, घर से दूरी, तनावपूर्ण कार्य वातावरण और पर्याप्त काउंसलिंग की कमी जवानों को अवसाद की ओर धकेलती है। जो सुरक्षाकर्मी हमारी सुरक्षा में लगे हैं, उनकी मानसिक सुरक्षा भी उतनी ही अहम है। आत्महत्याओं के लगातार बढ़ते आंकड़े न केवल व्यक्तिगत त्रासदी, बल्कि सिस्टम में सुधार की जरूरत को भी दर्शाते हैं। सिर्फ जांच नहीं, निवारक कदम और संवेदनशील नेतृत्व ही जवानों को इस अंधेरे से बाहर निकाल सकते हैं।