नई दिल्ली । ओडिशा के पुरी में चल रही विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारत की गहराई से जुड़ी सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। इस यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु न केवल भगवान के दर्शन करते हैं, बल्कि उनके रथ को खींचने वाली रस्सियों को छूने भर से स्वयं को धन्य मानते हैं।
सवाल यही है कि कि क्या आप जानते हैं इन रस्सियों के बारे में और उनके महत्व को। तो यहां बताते चलें कि इन रस्सियों के भी नाम हैं, और उनके पीछे गूढ़ पौराणिक कथाएं छुपी हैं। आइए इस खबर के जरिए जानते हैं तीनों रथों की रस्सियों का महत्व—
1. भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी — शंखचूड़
भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने वाली रस्सी को शंखचूड़ कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, शंखचूड़ नामक एक असुर ने भगवान जगन्नाथ को अधूरी प्रतिमा समझकर उनका हरण करना चाहा। तब भगवान बलभद्र ने उसे पराजित कर मोक्ष प्रदान किया। उसकी रीढ़ व नाड़ी से बनी रस्सी आज भगवान के रथ को खींचने का माध्यम बनी है। यह रस्सी मोक्ष, समर्पण और शुद्धि का प्रतीक है।
एक अन्य कथा में शंखचूड़ असुर को भगवान शिव ने पराजित किया था, जब विष्णु ने ब्राह्मण का रूप लेकर उससे उसका दिव्य कवच ले लिया। उस समय शंखचूड़ को वरदान मिला था कि वह कलियुग में भगवान के कार्य में उपयोगी होगा, इसलिए इस रस्सी को उसका प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार शंखचूड़ कालसर्प दोष की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए इस रस्सी को छूना अत्यंत शुभ माना जाता है।
2. भगवान बलभद्र की रस्सी — वासुकि
बलभद्रजी के रथ की रस्सी का नाम है वासुकि, जो पौराणिक नागराज और भगवान शिव के गले का आभूषण माने जाते हैं। कहा जाता है कि वासुकि ने अपने बड़े भाई शेषनाग से सेवा का अवसर मांगा था, तब शेषनाग ने कहा कि जब वह बलभद्र के रूप में जन्म लेंगे, तब वासुकि को सेवा का अवसर मिलेगा। यह रस्सी भाईचारे, सेवा और समर्पण का प्रतीक है।
3. देवी सुभद्रा की रस्सी — स्वर्णचूड़
देवी सुभद्रा के रथ की रस्सी को स्वर्णचूड़ कहा जाता है। यह रस्सी माया और मोह के बंधन को दर्शाती है। मान्यता है कि यह रस्सी संसारिक बंधनों, रिश्तों, कर्म और भाग्य की गिरहों को दर्शाती है, जिनसे आत्मा परमात्मा से मिलने की यात्रा करती है। इस रस्सी को खींचना माया के बंधन से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
रथ खींचना: केवल परंपरा नहीं, ईश्वर-स्पर्श का अनुभव
पुरी की रथयात्रा में रस्सियों को खींचना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि ईश्वर को छू लेने जैसा अनुभव है। ये रस्सियां न केवल रथ को खींचती हैं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं, आस्था और संस्कारों को जोड़ने वाली डोर भी बन जाती हैं। पुरी की रथयात्रा की रस्सियां केवल रेशों का गुच्छा नहीं, बल्कि पौराणिक कहानियों, दिव्यता और आस्था की जीवित प्रतिमाएं हैं।