चंदन मिश्र
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा को सोचने के लिए विवश कर दिया है। भाजपा नेता इस करारी हार की समीक्षा करेंगे और फिर इसका फलाफल दिखाई देगा। लेकिन कम से कम अगले पांच साल तक भाजपा को और ज्यादा आक्रामक होकर संघर्ष करना होगा। सड़क से लेकर सदन तक सत्ता विरोधी संघर्ष तेज करने होंगे, तभी भविष्य का रास्ता प्रशस्त होगा। इसके लिए भाजपा को नए सिरे से ओवरऑयलिंग करनी होगी। झारखंड में भाजपा के अंदर मठाधीशी चल रही है। संगठन में पिछले एक दशक से कुछ मठाधीशों का कब्जा हो गया है। संगठन को जैसा चाहा वैसे चलाया। अध्यक्ष हों या संगठन महामंत्री जो भी बदलकर आए, उन्हें ये मठाधीश अपने आईने में उतार लेते हैं। चाहकर भी अध्यक्ष और संगठन महामंत्री वैसा ही करते हैं, जैसा मठाधीश चाहते हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, हर मौके पर मठाधीशों की चलती है। संगठन के किसी कार्यक्रम में आगे, आगे यही होते हैं या दिखाई देते हैं। चुनाव में प्रभारी बनना हो या कोई प्रबंधन करना हो तो ये मठाधीश आगे-आगे होते हैं। उनके कारण क्षेत्र के नेता और छोटे कार्यकर्ता बिल्कुल खुश नहीं रहते हैं। आम कार्यकर्ताओं से इनका व्यवहार भी बॉस और नौकर की तरह होता है। इन मठाधीशों की करतूत के बारे कोई केंद्रीय नेताओं को नहीं बताते हैं। प्रदेश के बड़े नेता इन मठाधीशों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पाते हैं। ये मठाधीश बहुत जुगाड़ू होते हैं। कहां और कैसे पलटी मारना है या रंग बदलना है, ये अच्छे से जानते हैं। ये मठाधीशों ने संगठन को अपनी जेबी संस्था मानकर चल रहे हैं। ये किसी को अपने सामने टिकने नहीं देते। भाजपा के केंद्रीय नेताओं को झारखंड को अगर सांगठनिक तौर पर निरोग और मजबूत बनाना हो तो यहां संगठन के मठाधीशों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखाना होगा। नए सिरे से संगठन को पुनर्गठित करनी होगी। निर्विवाद और नए चेहरे लाकर संगठन को दुरुस्त करना होगा, जो झारखंड के गांव से लेकर शहर तक के लोगों को जनता हो। कार्यकर्ताओं को जानते और समझते हों। सांगठनिक फेरबदल का काम अगले तीन चार सालों में पूरा करना होगा, तभी अगले चुनाव के लिए भाजपा झारखंड में तैयार हो पाएगी। (यह लेखक के निजी विचार है)…..