नई दिल्ली । दुश्मन को सबक सिखाओ…हमारी सेना तैयार है…पहलगाम आतंकी हमले के बाद से ही ऐसी आवाजें हर तरफ से उठ रही थीं। भारत ने अपने बेगुनाह लोगों का बदला लेने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। इसके बाद दोनों देशों में युद्ध जैसा माहौल बन गया। युद्ध की तैयारियों से पहले ही दिल दिमाग पर युद्ध का उन्माद छा जाना ही वार हिस्टेरिया की श्रेणी में आता है।
भारत-पाकिस्तान के बीच एक अघोषित युद्ध का माहौल बन गया था। ऐसे में अचानक दोनों देशों ने सीजफायर का ऐलान कर दिया, तब भी वो उन्माद एकाएक ठंडा नहीं पड़ा। सवाल उठता है, कि क्या यह सिर्फ देशभक्ति है या कुछ और है? वॉर हिस्टेरिया यानी युद्ध का उन्माद, वो भावनात्मक तूफान है जो युद्ध की आशंका या शुरुआत के साथ समाज में फैलता है। ये सिर्फ सैनिकों या हथियारों की बात नहीं। ये वो माहौल है जब पूरा देश हम बनाम वो की सोच में डूब जाता है। इसमें दुश्मन को खतरनाक और अपने देश को सही ठहराया जाता है। लोग तर्क भूलकर गुस्से और डर में जीने लगते हैं। टीवी पर चीखते एंकर, सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट और गली की बहसें सब इसी उन्माद का हिस्सा हैं। हाल के भारत-पाक तनाव में दोनों देशों में ये साफ देखा जा सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद कई मीडिया प्लेटफार्म ने बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए कि कैसे दुश्मन के ठिकाने तबाह हो गए। दूसरी तरफ पड़ोसी देश का मीडिया भी भारत के खिलाफ सत्यापन के बिना नेगेटिव खबरें दिखाकर अपनी जनता को भड़का रहा था। दोनों देशों में लोग सड़कों पर उतरे, सेना का समर्थन किया और सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लग गई। ये ऐसा वॉर हिस्टेरिया है जो मैदान में जंग शुरू होने से पहले दिमाग में जंग छेड़ देता है।
मशहूर मनोविशेषक ने अपनी किताब में लिखा था कि इंसान के अंदर गुस्सा और हिंसा की आग हमेशा सुलगती रहती है। जब कोई खतरा सामने आता है जैसे कि आतंकी हमला तो ये आग भड़क उठती है। लोग डरते हैं, आक्रोश और गुस्से से भर जाते हैं एकजुट होकर दुश्मन को खत्म करने की बात करते हैं, लेकिन ये इतना भी स्वाभाविक नहीं होता। दार्शनिकों का मानना है कि वॉर हिस्टेरिया को जानबूझकर बढ़ाया जाता है। सरकारें और मीडिया दुश्मन की ऐसी छवि बनाते हैं, जो डरावनी हो। इस तरह वॉर हिस्टेरिया इंसान की भावनात्मक कमजोरियों को हथियार बनाता है।
वॉर हिस्टेरिया सिर्फ भावनाओं का उबाल नहीं बल्कि एक बड़ा सामाजिक-राजनैतिक बदलाव भी दिखाता है। इसको राजनीतिक हथियार भी माना जाता है जिसे अंग्रेजी में रैली अराउंड द फ्लैग सिंड्रोम कहते हैं। इसमें सरकारें और नेता अक्सर एक बाहरी खतरे का हवाला देकर जनता को एकजुट करती हैं। यह रणनीति राष्ट्रवाद की भावना को जगाती है और लोगों का ध्यान आंतरिक भेदभाव की भावना से हटाकर बाहरी दुश्मन पर केंद्रित कर देता है। भारत में ये बदलाव वृहद रूप से देखने को मिला। जब पहलगाम में आतंकी हमला हुआ।
युद्ध का उन्माद पहले तो आसान लगता है, लेकिन धीरे-धीरे लोगों में भय और असुरक्षा आती है, लोग डरने लगते हैं कि हमला कभी भी हो सकता है। वार हिस्टेरिया का असर 10-15 दिन में कम नहीं होता। कई लोगों खासकर बच्चों और युद्ध से प्रभावित क्षेत्र के लोगों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसे लक्षण दिखते हैं। उदाहरण के लिए कश्मीर में सीजफायर के बाद भी लोग डर में जी रहे थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य आबादी में ये प्रभाव 6-12 महीने में कम होता है, लेकिन युद्ध क्षेत्र में ये सालों तक रह सकता है। आज भारत-पाकिस्तान सीजफायर ने एक ऐसा मौका दिया है कि हम इस उन्माद से सबक लें। जंग मैदान में नहीं दिमाग में जीती जाती है और अगर हम अपने दिमाग को शांति और संवाद की राह पर ले जाएं तो असली जीत वही होगी।