श्री बेसरा के अनुसार “”””” 1980 में गुरु जी ने कहा था…. मेरा उत्तराधिकारी के रूप में एक दिन सूर्य सिंह बेसरा ही झारखण्ड आन्दोलन का बागडोर संभालेंगे
1980 में मैं घाटशिला कॉलेज में प्रथम वर्ष वाणिज्य संकाय के विद्यार्थी थे। उन दिनों गुरूजी झारखण्ड आन्दोलन में काफ़ी लोकप्रिय नेताओं में से थे। गुरूजी सूदखोर महाजनों के खिलाफ सीधी करवाई की लड़ाई लड़ते थे साथ ही शराब बंदी और जंगल बचाओ का भी आन्दोलन करते थे। मैं उनसे प्रभावित हो कर मेरे गृह प्रखंड डूमरिया क्षेत्र में 1980 में मेरे नेतृत्व में शराब भट्टी तोड़ो आंदोलन, आदिवासियों का जमीन वापसी करना तथा जंगल बचाओ आन्दोलन किया था। उसके बाद 1980 में शैलेन्द्र महतो के साथ 2 फ़रवरी को संतालपरगना स्थित दुमका जाकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की स्थापना दिवस पर जनसभा को संबोधित किया। मेरा भाषण सुन कर गुरूजी काफी प्रभावित हुआ। हमने गुरूजी को आग्रह किया कि 30 जून को सिंहभूम जिला स्थित मुसाबनी ताम्र नगर में “सिदो कानू हूल” दिवस में आपको मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करना है। गुरूजी ने आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। 30 जून को मुसाबनी गुरूजी उपस्थित हुए जहां 10 हजार लोगों की भीड़ देख कर बहुत खुश हुए। तब से ही मैं झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का समर्पित सिपाही बन कर पार्टी का विस्तार किया। गुरूजी खुश हो कर मुझे 1985 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए घाटशिला से झामुमो की टिकट से चुनाव लड़ाए। मै 10000 दस हजार वोट से चुनाव जीत गए थे, लेकिन चुनाव पदाधिकारी के गड़बड़ी से कांग्रेस के उम्मीदवार कारण मरांडी को निर्वाचित घोषित किया गया। उसके बाद 1986 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की द्वितीय महाधिवेशन रांची में हुई , जहां मुझे पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के अलावे गुरूजी ने मुझे छात्र संघटन बनाने का जिम्मेदारी सौंपा। उसके बाद मैंने 22 जून 1986 को जमशेदपुर में “ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठन किया था।