नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जाति जनगणना करवाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि जाति जनगणना एक नीतिगत मामला है। यह मुद्दा केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। याचिकाकर्ता पी प्रसाद नायडू ने सुप्रीम कोर्ट से जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी। नायडू ने याचिका में कहा था कि केंद्र और उसकी एजेंसियों ने आज तक जनगणना-2021 के लिए गणना नहीं की है। शुरुआत में कोविड-19 महामारी और फिर कई बार स्थगित किया जा चुका है। जनगणना में देरी के कारण डेटा में बड़ा अंतर पैदा हो गया है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील रविशंकर जंडियाला ने कहा कि कई देशों ने जातिगत जनगणना की, लेकिन भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। 1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।
जातीय जनगणना को राजनीतिक हथियार न बनाएं : आरएसएस
नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछड़ों के उत्थान के लिए जातीय जनगणना कराए जाने का पक्षधर है। हालांकि संघ का मानना है कि इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए ताकि समाज के विभिन्न वर्गों में मतभेद पैदा हों। संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक में इसके सहित अन्य राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर चर्चा हुई। बैठक में बांग्लादेश के हालात और पश्चिम बंगाल में हुई घटना पर भी चर्चा हुई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक इस वर्ष केरल के पलक्कड़ जिले में 31 अगस्त से 2 सितंबर तक आयोजित हुई। बैठक के आज तीसरे दिन संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने पत्रकारवार्ता कर चर्चा के विषयों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जातीय जनगणना संवेदनशील मुद्दा है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। संघ जातीय जनगणना का समर्थन करता है। इससे समाज में पीछे रह गए वर्गों के बारे में सटीक आंकड़े पता चलते हैं, जिसके माध्यम से उन वर्गों के उत्थान पर सरकार काम करती है। हालांकि वे इसका इस्तेमाल कर राजनीतिक लाभ उठाने और समाज में मतभेद पैदा करने के खिलाफ हैं। आंबेकर ने बताया कि बैठक में बंगाल में हुए घटनाक्रम पर भी चर्चा हुई है। संघ का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ देशभर में हो रहे अपराधों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।