रांची । झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन कल 30 अगस्त को भाजपा में शामिल होंगे। वे दिल्ली में हुई गहमागहमी के बाद बुधवार को रांची लौट आए और देर शाम उन्होंने झामुमो के साथ-साथ मंत्री और विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया। चंपाई जब रांची लौटे तो यहां एयरपोर्ट पर झामुमो का कोई बड़ा धड़ा उनके साथ नहीं दिखा। हालांकि, देर शाम उनके आवास पर समर्थकों की भीड़ उमड़ी। इसके बाद से भाजपा का टेंशन भी बढ़ा हुआ बताया जा रहा है। भाजपा लग रहा है कि कहीं ये सौदा घाटे का तो नहीं होगा। इधर झारखंड सरकार की ओर से मुख्यमंत्री का एक बड़ा कार्यक्रम राजधानी रांची में रखा गया है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि जहां एक ओर भाजपा चंपाई के आगमन के लाभ हानि का हिसाब-किताब लगा रही है। वहीं दूसरी ओर झामुमो इस टूट को हल्के में न लेते हुए अपनी रणनीति को और अधिक धारदार बनाने का प्रयास कर रहा है।
चंपाई का निश्चित रूप से झामुमो के एक बड़े आदिवासी नेता के रूप में पहचान है। पर क्या झामुमो के बिना भी उनका प्रभाव बना रहेगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। और इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने में भाजपा आलाकमान को इतना लंबा समय लगा। झारखंड आंदोलन के समय से ही चंपाई झामुमो के प्रमुख नेताओं में से रहे हैं और जब-जब झामुमो सत्तासीन रही है तब-तब उस सत्ता में शामिल रहे। अपनी पांच दशकों से भी लंबी राजनीति में चंपाई झामुमो की विचारधारा में जिस प्रकार रचे बसे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने केसरिया अवतार में चंपाई किस प्रकार की राजनीति कर पाते हैं। और कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं। अब जबकि चंपाई सोरेन ने झामुमो के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है, ऐसे में उन्हें झामुमो के बिना अपनी प्रतिष्ठा और पहचान बनाए रखने की और झामुमो को भी चंपाई के बिना कोल्हान में अपना किला अभेद्य रखने की चुनौती होगी। इसके अलावा ये भी बताया जा रहा है कि चंपाई के साथ कोई बड़ा आने में संकोच कर रहा है। उसकी वजह ये है कि पहले चंपाई का भाजपा में कद क्या होगा इसके बाद साथ जाने और न जाने का निर्णय लेंगे।
हालांकि राजनीतिक श्रेष्ठता का सही आकलन तो समय के साथ ही किया जाना संभव हो पाएगा। लेकिन साधारण अंकगणित तो यह समझाता है कि कोल्हान के 14 विधानसभाओं में से 13 विधानसभा सीटें इंडिया गठबंधन के पास हैं और एक से निर्दलीय सरयू राय विधायक हैं। इन 14 सीटों पर 2019 के चुनाव में भाजपा पराजित तो हुई, लेकिन दूसरे स्थान पर रही है। राजनीतिक जोड़ घटाव के माध्यम से भाजपा कोल्हान में कुछ ऐसा ही मंच सजाने का प्रयास कर रही है, जैसा लोकसभा चुनावों के पहले उसने संताल में किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संताल का यह सियासी प्रयोग उतना सफल नहीं हो पाया था, क्योंकि झामुमो से बागी होकर निकले लोबिन हेम्ब्रम और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रवधू सीता सोरेन भाजपा के लिए कमल खिलाने में कारगर नहीं हो सके। अब लगभग उसी प्रकार की बाजी कोल्हान में खेली जा रही है।
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