गिरिडीह । जिले में एक अनूठा शिवधाम है जहां लम्बे समय से भक्तों द्वारा मनोवांछित फल के लिए धरना दिये जाने की प्रथा है। गिरिडीह जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर जमुआ अंचल में स्थित महाभारत काल से जूड़ा यह शिव का धाम “झारखंड धाम” के नाम से प्रसिद्ध है।
झारखंड धाम कई मायनों में शिव के अन्य धामों से अलग और अनूठा है। इस धाम की विशेषता है कि भक्त नाना प्रकार की मनोकामना के लिए हफ्तों-महीनों तक धरना देते हैं। उन्हें स्वप्न या अन्य स्रोतों से मनोकामना पूर्ति का आभास हो जाने पर बाबा का आभार व्यक्त कर घर लौट जाते हैं। यह क्रम अनवरत वर्षभर चलता है। इसके अलावा इस धाम की एक और विशेषता है कि इस धाम में भोलेनाथ को छत विहीन खुले आसमान के नीचे निवास करना पसंद है। हालांकि, कई बार भक्तों ने गर्भगृह के छत निर्माण कार्य शुरू किया लेकिन चम्मत्कारी घटनाओं के कारण छत निर्माण में सफलता नहीं मिली।
दरअसल, झारखंड धाम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है। जानकारों के मुताबिक महाभारत युद्ध के दौरान भगवान शिव ने अर्जुन को इसी स्थान पर पशुपति अस्त्र प्रदान किया था। इस दौरान पूरा इलाका जंगल-झाड़ से आच्छादित था। इस स्थान पर एक पत्थर हुआ करता था, जिसपर चढ़कर लोग बेर तोड़ते थे। एक दिन पत्थर में हुई चमत्कारिक घटना के बाद से ग्रामीण पत्थर के दो शिवलिंग स्वरूप मे पूजा करने लगे। इलाके के लोग मंदिर के गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग को स्वयंभू महादेव के रूप में मानते हैं। इलाके के लोगों की झारखंड धाम बाबा भोलेनाथ पर अपार आस्था है।
समाजसेवी अनिल वर्मा और अनूप वर्मा कहते हैं कि बाबा के इस अद्भुत दरबार में अंर्तमन से मांगनें वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। भक्तगण मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मंदिर के आसपास किराये पर धर्मशालाओं में कमरा लेकर हफ्तों-महीनों तक फलहारी करके धरना देते हैं। इस दौरान भक्त पूरी निष्ठा से मंदिर में सेवा देते हैं। मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर शाम की आरती श्रृंगार पूजा के पश्चात मंदिर परिसर में जहां स्थान मिल जाता है शयन करते हैं।
जब भक्त को आभास हो जाता है कि बाबा ने उनकी अर्जी स्वीकार कर लिया है तब वे घरों को लौट जाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात बाबा के दरबार में एक बार अवश्य आकर भोलेनाथ का जल अर्पण कर आभार व्यक्त करते हैं। हालांकि, कई ऐसे लोग भी हैं, जो धरने से मनोकामना पूर्ण होने के तथ्य से इत्तेफाक नहीं रखते हैं लेकिन पवित्र श्रावण मास में बैद्यनाथ धाम देवघर नहीं जा सकने पर झारखंड धाम में भोलेनाथ को जल अर्पण करते हैं।