राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
झारखंड में सरना धर्म कोड को लेकर सियासत पूरे उफान पर है। सत्ताधारी दलों ने इसे लेकर राजनीति तेज कर दी है। भाजपा भी सत्ताधारी दलों को प्रत्युत्तर देने में जुटी है। सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस एक नई सियासी चाल में विपक्षी भाजपा को उलझाना चाहते हैं। जनजातीय समाज की राजनीति का चादर ओढ़कर सरना समाज के लिए नई जनगणना में अलग से सरना धर्म कोड का कॉलम जोडऩे की मांग कर आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र की भाजपा सरकार को इस वर्ष या अगले साल की शुरुआत में देश में जनगणना करानी है। और इसी जनगणना को आधार मानकर सरना धर्म कोड पर राजनीति की जा रही है। भाजपा ने सरना धर्म कोड के लिए आंदोलन कर रहे सत्ताधारी दल कांग्रेस से गंभीर सवाल दाग कर पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। भाजपा ने कांग्रेस से सवाल किया है कि 2014 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने संसद में सरना धर्म कोड की मांग को ठुकराते हुए यह क्यों कहा था कि यह संभव नहीं है। जब केंद्र की कांग्रेस सरकार आदिवासी समुदाय की इस मांग को खारिज कर चुकी है, फिर किस मुंह से सरना धर्म कोड की मांग कर रही है। भाजपा ने झामुमो से भी कांग्रेस की सहयोगी होने के नाते यही सवाल किया है। सरना धर्म कोड को लेकर पिछले दो दशक से झारखंड में यही सियासत हो रही है। भाजपा ने पिछले दिनों कांग्रेस और झामुमो की ओर पासा फेंकते हुए कहा है कि झारखंड में धर्मांतरण रोकें तब सरना धर्म कोड की बात करें। भाजपा का मानना है कि सरना धर्म कोड की मांग सरना आदिवासियों से कहीं ज्यादा ईसाई बन चुके आदिवासी कर रहे हैं। झारखंड में बड़े पैमाने पर आदिवासी समुदाय का धर्मांतरण होते रहा है। इसे लेकर सरना धर्मावलंबी लगातार विरोध कर रहे हैं। सरना समाज के अगुआ रहे समाजसेवी और बुद्धिजीवियों ने ईसाई बन चुके आदिवासियों को आरक्षण की सुविधा देने का विरोध किया है। बाबा कार्तिक उरांव इसके सबसे बड़े पैरोकार रहे हैं। उन्होंने संसद में भी धर्मांतरित आदिवासियों को आदिवासी न मानते हुए आरक्षण न देने की मांग करते रहे। सरना समाज के लोगों ने केंद्र सरकार से पूरे राज्य में डीलिस्टिंग की मांग जोर शोर से कर रहे हैं। वैसे आदिवासी समुदाय को आरक्षण की सूची से बाहर करने की यह मांग है, जो अपना धर्म बदल चुके हैं। आनेवाले साल में पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी होना है। परिसीमन तत्कालीन जनसंख्या के आधार पर होना है। झारखंड में आदिवासियों की संख्या लगातार घट रही है। ऐसे में लोकसभा और विधानसभा की आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें घट सकती हैं। लिहाजा इसका विरोध करना राजनीतिक दलों का धर्म होगा क्योंकि उनकी चुनावी राजनीति आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के भरोसे चल रही है। झामुमो और कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने पिछले कार्यकाल में ही सरना धर्म कोड को लेकर विधानसभा में एक प्रस्ताव लाया था। इस प्रस्ताव को सत्ताधारी दलों के अलावा विपक्षी दलों में भाजपा आजसू ने भी समर्थन किया था। पक्ष जब इस मुद्दे पर राजनीति कर रहा है तो विपक्ष पीछे क्यों रहे। लिहाजा विपक्ष ने भी सत्ताधारी दल के इस प्रस्ताव का समर्थन किया। सभी दलों को आदिवासियों का वोट और समर्थन चाहिए।