नई दिल्ली । नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार की सत्ता संभालते ही अपराध पर प्रहार किया। तब अपराध और राजनीति के घालमेल से अपनी दबंगई बरकरार रखने वाले बाहुबलियों की शामत आ गई थी। छुटभैए अपराधकर्मियों ने बिहार से पलायन करने में ही भलाई समझी। 2005 से 2010 के दौरान आनंद मोहन, अनंत सिंह और शहाबुद्दीन जैसे अपराध की दुनिया से राजनीति में मुकाम बना चुके नेता जेल में डाल दिए गए। इसके बाद बिहार में अपराध भी अप्रत्याशित ढंग से काबू में आ गया। नीतीश राज को लोग सुशासन कहने लगे थे। नीतीश की इस मुहिम में तत्कालीन डीजीपी अभ्यानंद ने पूरा साथ दिया। नीतीश राज में अपराध जगत के दुर्नाम लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजती और कानूनन उन्हें सजा होती। निचली अदालतें राहत दे देतीं, तब नीतिश सरकार ऊपरी अदालतों में अपील करती। यह क्रम तब तक जारी रहता, जब तक सजा मुकर्रर न हो जाती। नीतीश ने 2005 से ही अपना तकिया कलाम बना लिया कि क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करुंगा। पांच साल तक उन्होंने इसका बखूबी पालन भी किया।
राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन पर सिवान के एक स्वर्ण व्यवसायी के बेटों को तेजाब से नहला कर मार डालने का केस दर्ज हुआ। चंदा बाबू के बेटों के खौफनाक मर्डर केस के गवाह की हत्या का भी शहाबुद्दीन पर आरोप था। हाईकोर्ट ने शहाबुद्दीन को इन मामलों में जमानत दे दी। पीड़ित पक्ष जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। बिहार सरकार ने भी कोई रहमी नहीं दिखाई। नीतीश सरकार भी शहाबुद्दीन की जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। बिहार सरकार की दलीलों के बाद शहाबुद्दीन की जमानत रद्द हो गई और जेल में रहते ही उन्होंने आखिरी सांस ली। अपराध के प्रति नीतीश कुमार की जीरो टॉलरेंस का ये मामला एक नजीर बना।
राजनीति की शुचिता बरकरार रखने और अपराध पर अंकुश लगाने के लिए नीतीश ने अपराध जगत से जुड़े लोगों के प्रति पहले भले सख्त रुख अपनाया, पर अब वे बदल चुके हैं। राजनैतिक विश्लेषक इस बदलाव को नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी मानते हैं। पहले आनंद मोहन की रिहाई की नीतीश ने राह बनाई और अब अनंत सिंह की रिहाई पर नीतीश सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जाहिर की।
आनंद मोहन लंबे समय से गोपालगंज के डीएम रहे जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में सजा काट रहे थे। मामले में पहले उन्हें फांसी की सजा हुई थी। ऊपरी अदालत ने फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी। तब से वे जेल में थे। उनकी रिहाई के लिए नीतीश सरकार ने जेल मैन्युअल में संशोधन कर दिया। इससे आनंद मोहन सहित कई सजायाफ्ता लोगों की रिहाई की राह आसान हो गई। आनंद मोहन की रिहाई का राजनीतिक लाभ भी नीतीश को मिला। विश्वासमत के दौरान आनंद मोहन के विधायक बेटे चेतन आनंद ने आरजेडी छोड़ नीतीश का साथ दिया। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद शिवहर से जेडीयू की सांसद निर्वाचित हुईं।
एके-47 रखने के आरोप में अनंत सिंह भी अब रिहा हो गए हैं। उनकी रिहाई के खिलाफ नीतीश ने चुप्पी साध ली है। जिस तरह शहाबुद्दीन के मामले में नीतीश ने बेल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, वैसी कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही। लोकसभा चुनाव के दौरान अनंत सिंह पैरोल पर बाहर थे। उन्होंने मुंगेर में जेडीयू उम्मीदवार राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह कि परोक्ष तौर पर मदद की। ललन सिंह विजयी हुए। तभी से यह अनुमान लग रहा था कि अब उनकी रिहाई में कोई अड़चन नहीं होगी। अड़चन की आशंका इसलिए भी नहीं थी कि अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने चेतन आनंद की तरह ही आरजेडी छोड़ नीतीश कुमार का विश्वासमत के दौरान साथ दिया था।
नीतीश कुमार की बदली रणनीति का सियासी लाभ भले उन्हें मिल जाए, लेकिन इससे सुशासन बाबू की छवि खबर हुई है। बढ़ते अपराध के कारण लालू-राबड़ी के शासन को नीतीश जंगलराज कहते नहीं थकते। वैसे भी बिहार में तरह-तरह के अपराधों की अभी बाढ़ आई हुई है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव अपराधों की बुलेटिन जारी करने लगे है।
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