पटना । बिहार सीएम नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार पहली बार सार्वजनिक रूप से 8 जनवरी को सामने आए थे। वे अपने पिता के साथ स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि देने अपने पैतृक गांव कल्याण बिगहा पहुंचे थे। मीडिया से वे पहली बार रुबरु हुए थे। वे जितना बोले, उससे यही लगा कि उन्हें जितना बोलने के लिए कहा गया था, उतना ही उन्होंने कहा। नपे-तुले शब्दों और पोलिटिकल अंदाज में उन्होंने पिता के कार्यों के लिए उन्हें वोट देने की अपील की। उसी दिन से यह बात चल पड़ी की निशांत राजनीति में एंट्री करने वाले हैं।
निशांत पिता नीतीश कुमार के साथ सीएम आवास पर लोगों से मिलते रहे। नीतीश की ही तरह वे जेडीयू नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मिले। इतना ही नहीं, पार्टी के बड़े नेताओं को भी उनसे मिलना औपचारिकता से ज्यादा जरुरी लगा। जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और मंत्री विजय चौधरी ने तो निशांत को ऐसा भाव दिया, जैसे वे जेडीयू के सीनियर लीडर हों।
निशांत की 50 के आसपास है। निशांत मौजूदा सीएम के बेटे हैं और तेजस्वी पूर्व मुख्यमंत्री के। चिराग पासवान भी पिता की विरासत ही संभाल रहे हैं। 10 साल के राजनीतिक करियर में तेजस्वी डिप्टी सीएम दो बार बन गए तो चिराग पासवान केंद्रीय मंत्री बन गए। लगता है कि निशांत ने अब जिद छोड़ दी है। वे भी दूसरे नेता पुत्रों की तरह राजनीति में आना चाहते हैं। उम्र के हिसाब से निशांत की समझ तो बढ़ी ही होगी। फिर भी पहली बार राजनीति में जगह बनाने के लिए निशांत को राजनीतिक प्रशिक्षण की जरूरत होगी। उन्हें जेडीयू के कुछ नेता राजनीति की बारीकियां समझा रहे हैं।
अब लगता है कि नीतीश कुमार ने भी अपनी जिद छोड़ दी है। वे तो वंशवादी राजनीति के कट्टर विरोधी रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने जीते जी परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में आने से रोका। नीतीश कुमार दूसरे समाजवादियों की तरह ही इस बात के पक्षधर रहे हैं कि रानी की कोख से जन्मा व्यक्ति ही राजा नहीं बनेगा. लालू यादव की वंशवादी राजनीति पर नीतीश के तेवर हाल तक तल्ख रहे हैं. जब तक निशांत की एंट्री की औपतारिक घोषणा नहीं हो जाती, तब तक यही मान कर चलना होगा कि नीतीश कुमार की वंशवादी राजनीति पर धारणा बदली नहीं है।
नीतीश कुमार जानते हैं कि पिछली बार जैसी ही अगर जेडीयू की खराब स्थिति रही तब भी वे सब पर भारी पड़ेंगे। बीजेपी और जेडीयू को पिछली बार जितनी ही सीटें मिली तब भी नीतीश को खेल करने का मौका मिल जाएगा। आरजेडी और बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जेडीयू पर ही निर्भरता रहेगी। यानी नीतीश किंगमेकर की भूमिका में रहेंगे। बीजेपी उन्हें आरजेडी की ओर मुखातिब होने नहीं देना चाहेगी। शायद यही वजह है कि बीजेपी द्वारा सीएम फेस घोषित न करने के बावजूद नीतीश को कोई बेचैनी नहीं है।
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