राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है। बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा होने के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पास हो चुका है । अनुपूरक बजट पर चर्चा हो चुकी है। इसे विधानसभा से पारित भी कर दिया गया है। सोमवार को नए वित्तीय वर्ष के लिए बजट पेश किया जाएगा। इसके पहले शुक्रवार को आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश हो चुकी है। विधानसभा के प्रश्नकाल के दौरान इन दिनों सत्ता पक्ष के विधायकों और सरकार के मंत्रियों के बीच तीखी नोक-झोंक देखी जा रही है। विपक्ष तो सरकार के साथ भिड़ता ही है लेकिन इस बार सत्ता पक्ष के कई विधायकों को मंत्रियों के जवाब से असंतुष्ट देखा जा रहा है और उसका नतीजा यह है की विधायक सदन में ही मंत्रियों के रवैये से उनसे जूझते दिखाई देते हैं। ऐसा समझा जा रहा है कि सदन में आने के पहले मंत्री प्रश्नोत्तर को लेकर पूरी तैयारी नहीं करते हैं। मंत्री अधिकारियों के समझाने और लिखित उत्तर दिए जाने के कारण उन पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं। विपक्ष की असंतुष्टि तो समझ में आती है, लेकिन सत्ता पक्ष के विधायक भी यदि मंत्रियों के जवाब से संतुष्ट नहीं हों तो सरकार की किरकिरी हो जाती है। आए दिन अभी यही हो रहा है।
झारखंड की वर्तमान सरकार में आधे से ज्यादा मंत्री नए नवेले हैं। विधायक बनने के बाद वह पहली बार मंत्री बने हैं। ऐसे मंत्रियों के पास कार्य का अनुभव भी नहीं है। साथ ही मंत्री जवाब देने के पहले या सवालों के जवाब तैयार करने के दौरान अधिकारियों से कोई चर्चा या समीक्षा नहीं करते हैं। अधिकारी जिस तरह का जवाब तैयार करते हैं या मंत्रियों को जो बातें समझा देते हैं मंत्री उसे सदन में वैसे ही पेश कर देते हैं। पिछले सप्ताह सदन में सत्ता पक्ष के विधायक प्रदीप यादव, विक्सल कोनगाड़ी सहित कई विधायकों को मंत्रियों के साथ तीखे सवाल जवाब करते देखा गया। सदन में ऐसी अप्रिय स्थिति होने से सरकार के कामकाज की प्रणाली परिलक्षित होती है। विपक्ष के सवालों से तो सत्ता पक्ष के मंत्री आसानी से निपट लेते हैं लेकिन जब सत्ता पक्ष के ही सदस्य सरकार के मंत्रियों को सदन में घेरते हैं तब सरकार की फजीहत साफ दिखाई देती है।
नई विधानसभा में एक बात और साफ दिखाई दे रही है कि नए सदस्यों को विधायकी की प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं होने के कारण सदन में कौन क्या जवाब दे दे यह पता ही नहीं चल पाता है।
शुक्रवार को सदन में उस समय काफी अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो गई जब एक नए विधायक जयराम महतो ने सरकार के अनुपूरक बजट प्रस्ताव पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार का इस कदर बोलबाला है कि आम आदमी त्रस्त है। उन्होंने कहा कि आज से दो दशक पहले राज्य में नक्सलियों के भय से थाना के अधिकारी, अंचल कार्यालय और प्रखंड कार्यालय के अधिकारी रिश्वत मांगने से डरते थे। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल पलट गई है। विधायक जयराम महतो ने नक्सलियों के कामकाज का विरोध ही किया लेकिन उनके इस वक्तव्य पर कृषि मंत्री नेहा तिर्की को आपत्ति हो गई और वह अपनी जगह पर खड़े होकर विधायक के इस बयान पर विरोध दर्ज करने लगीं। कुछ देर तक दोनों के बीच नोक झोंक होती रही। हालांकि स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने मंत्री को समझने का काफी प्रयास किया लेकिन मंत्री और विधायक के बीच देर तक बकझक देर तक चलती रही।
विधायक जब अपने अंदर आत्म अनुशासन नहीं लाएंगे, बोलने के तौर तरीके नहीं सीखेंगे और मंत्री संसदीय प्रणाली के तहत अपना कामकाज नहीं सीखेंगे, सदन में कैसे पेश आए, यह नहीं जानेंगे तब तक यह स्थिति बनी रहेगी।
विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों के लिए दो दिवसीय प्रबोधन वर्ग आयोजित किया है। प्रबोधन वर्ग के आज उद्घाटन के दिन 81 विधायकों और मंत्रियों के बीच मात्र डेढ़ दर्जन विधायक और मंत्री ही शामिल हुए। इससे यह समझ जा सकता है की नये मंत्री और विधायक ना तो संसदीय व्यवस्था सीखना चाहते हैं और ना ही ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होकर वह नई बात जानना चाहते हैं। संसदीय व्यवस्था में विधायिका और कार्यपालिका सबसे महत्वपूर्ण अंग है। विधायिका कानून बनाती है और कार्यपालिका उसे लागू करती है। लेकिन यह दोनों अंग के सदस्य के अनुशासित, शिक्षित और दीक्षित नहीं रहेंगे तब तक ना तो विधायिका गौरवशाली होगी और ना कार्यपालिका सशक्त बन पाएगी। झारखंड विधानसभा के नए सदस्यों को, जिसमें मंत्री और विधायक दोनों शामिल हैं, संसदीय कार्य प्रणाली को पूरी शिद्दत के साथ सीखना होगा और सदन में अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना होगा तभी जनता के सवालों का जवाब मिलेगा और समस्याओं का हल निकलेगा।
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