राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
रांची जिले के तमाड़ प्रखंड में एक व्यक्ति ने प्रज्ञा केंद्र के संचालक के साथ मिलकर घोटाला किया और मईयाँ सम्मान योजना के तहत 112 लाभुकों की राशि अपने बैंक खाते में डलवा लिया। यानी जिन लाभुकों के बैंक खाते में यह राशि जानी थी, वहां नहीं गई। 112 लोगों को मिलने वाली इस योजना का लाभ बेईमानी से एक व्यक्ति ने उठा लिया। अब रांची जिले के डीसी इसकी जांच करवा रहे हैं। आज की यह ताजा खबर है। इस तरह की खबरें पिछले दो महीने से राज्य के विभिन्न जिलों से आ रही है। ऐसे घोटालेबाज हजारों की संख्या में हैं, जिन्होंने लाखों लाभुकों की राशि षडयंत्र के तहत हड़प ली है। सरकार इन घोटालेबाजों की जांच करवा रही है। शायद यही वजह है कि योजना की जनवरी और फरवरी की राशि लाभुकों के खातों में नहीं भेजी गई है।
योजना राशि हड़पने का घोटाले और भ्रष्टाचार का यह एक गंभीर मामला है और इसका निराकरण होना ही चाहिए। वरना यह लोकप्रिय योजना बहुत जल्द अलोकप्रिय हो जाएगी। सरकार की बदनामी होगी वह अलग। साथ ही योजना की राशि न सिर्फ अयोग्य लोगों और कुपात्रों के हाथ चली जाएगी,बल्कि राज्य के खजाने पर बहुत बड़ी चपेट पड़ेगी। विकास योजनाओं के पैसे काटकर इस योजना में पैसे दिए जा रहे हैं। राज्य के लोगों के साथ यह बहुत बड़ा धोखा होगा। झारखंड में मईयां सम्मान योजना हेमंत सरकार के लिए तो वरदान साबित हुई, लेकिन अब शासन और प्रशासन के लिए सरदर्द साबित हो रही है। मईयां सम्मान योजना की नाव पर सवार होकर इंडिया गठबंधन की सरकार ने चुनावी नदी पार कर लिया। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चुनाव में मात देकर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने सत्ता की कुर्सी पर दोबारा काबिज होने में सफलता पा ली। लेकिन इस योजना के साथ अब घोटालेबाज खिलवाड़ करना शुरू कर चुके हैं। यह बहुत ही चिंताजनक और गंभीर विषय है। चुनाव पूर्व हेमंत सोरेन की सरकार ने दो महीने तक लगभग 55 लाख महिलाओं के नाम पर उनके बैंक खाते में एक हजार प्रति माह की दर से राशि भेजी थी। पूरे राज्य में इसकी खूब चर्चा हुई। महिलाओं ने इसका लाभ उठाते हुए इंडिया गठबंधन सरकार के पक्ष में मतदान कर सरकार के हजार रुपए के तोहफा को सूद समेत लौटा दिया।
चुनाव के दौरान झामुमो कांग्रेस गठबंधन के नेताओं ने एक हजार की राशि को चुनाव बाद 2500 रुपए करने का ऐलान कर खूब वाहवाही और साथ में वोट भी बटोरे। चुनाव जीतने के बाद हेमंत सरकार ने दिसंबर में लाभुकों के खातों में पहली किश्त भेज कर न सिर्फ इसका अंधाधुंध प्रचार किया और बल्कि चारों ओर इसकी खूब वाह- वाही बटोरी। लेकिन जब जनवरी से 2500 रुपए देने की बारी आई तो मइयां योजना शासन और प्रशासन के लिए सरदर्द पैदा करने लगी। योजना की राशि सरकारीकर्मियों और प्रज्ञा केंद्र संचालकों की साठ गांठ से राशि कुपात्रों और घोटालेबाजों तक पहुंचने लगी। मीडिया में हर दिन खबरें उजागर होने लगी। जिला प्रशासन के सिर पर अब एक नया काम बोझ के रूप में आन पड़ा। उचित और योग्य लाभुकों की जांच पड़ताल शुरू हुई। हजारों की संख्या में फर्जी लाभुक सामने आने लगे। कई फर्जी लाभुकों के अलावा अयोग्य पात्र, सरकारी कर्मी और उनके रिश्तेदार योजना राशि डकारने में सफल रहे। लाभुकों की संख्या लाखों में घटने लगी है। 56 लाख से ज्यादा लाभुक घटकर फिलहाल 40 लाख से नीचे आ चुके हैं। जांच प्रक्रिया अभी भी जारी है। चुनाव प्रचार के दौरान मईयाँ योजना जब नेताओं की जुबां पर प्रचारित होने लगी थी, तभी आम लोगों के मन में इस बात की आशंका थी कि योजना का लाभ असली लाभुकों को मिलेगी या यह योजना भी घोटाले की भेंट चढ़ेगी। आम आदमी की यह आशंका सच साबित हुई। अब सरकार को बहुत सावधानी से इस योजना को कार्यान्वयन करना होगा। घोटालेबाजों को बेनकाब करते हुए उचित और योग्य पात्रों को ही इस योजना का लाभ मिले, यह सुनिश्चित करना होगा।
क्योंकि हजारों करोड़ की राशि सरकारी खजाने से ही निकलनी है, किसी राजनीतिक दल के बैंक खाते से नहीं। और सरकारी खजाने की असली मालिक राज्य की जनता होती है। फिर जनता के पैसे को इस तरह चुनाव जीतने के नाम पर कोई भी राजनीतिक दल घोटालेबाजों और अयोग्य लोगों के बीच लुटाए, यह क्या उचित होगा ? सरकार आज राज्य में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों की सूक्ष्मता से जांच करे तो हजारों क्या लाखों की संख्या में ऐसे लोग लाभुक के रूप में सामने आएंगे जो महीने हजारों या लाख रुपए तक कमाते हैं। कइयों के तो पक्के मकान हैं। उनके घर में एक से ज्यादा दो पहिए और चार पहिए वाहन तक हैं। आपको यह विश्वास न हो तो पांच किलो अनाज लेने वाले लाभुकों को किसी दिन जन वितरण प्रणाली की दुकान में जाकर देखें। इनमें से आधे से ज्यादा लाभुक अपनी बाइक या कार पर सवार होकर पांच किलो अनाज लेने जन वितरण प्रणाली की दुकान पर पहुंचते हैं। यह देश का असली सच है। 80 करोड़ लाभुकों में 30 करोड़ ऐसे ही लोग सामने आयेंगे,जो इस योजना के योग्य नहीं हैं। इसलिए राजनीतिक दलों को ऐसी लोक लुभावन योजनाएं लागू करने के पहले पूरी छानबीन करनी चाहिए। अन्यथा देश में फर्जीवाड़े या घोटालेबाजों की कमी नहीं है, जो सरकारी खजाने को लूटने में कोई संकोच नहीं करते हैं। और इसमें सत्ता पाने के लालच में राजनीतिक दल सहयोग करते हैं।