राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
झारखंड की राजधानी रांची में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का महाधिवेशन हो रहा है। इसे लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। सरकार और संगठन इसे लेकर एकाकार हो गया है। सरकार के मंत्री से लेकर संगठन के महामंत्री, सांसद से लेकर विधायक तक सभी पूरी शिद्दत से महाधिवेशन को सफल बनाने की तैयारी में जुट गए हैं। सबको अलग- अलग जिम्मेवारी सौंपी गई है। दरअसल झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लगातार दूसरी बार सत्तारूढ़ होने के बाद हौसला बुलंद है। झामुमो अब राज्य की राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर अपना सियासी चादर फैलाने को इच्छुक है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड में अब तक के सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी अपने राजनीतिक व्यक्तित्व और वैचारिक अस्तित्व को बदलने की कोशिश की है। अब अपने नेतृत्व क्षमता को हेमंत सोरेन व्यापक आयाम देना चाहते हैं। संगठन से जुड़े लोग भी उनके राजनीतिक व्यक्तित्व को एक ऊंची कद काठी देकर संगठन और नेता को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। रांची के महाधिवेशन में इसकी साफ झलक दिखाई देगी। झामुमो की पहली पीढ़ी के नेतृत्वकर्ता के रूप में इसके संस्थापकों में एक और वर्तमान अध्यक्ष शिबू सोरेन शारीरिक और मानसिक रूप से विश्राम लेने की अवस्था में हैं। गुरुजी के समकक्ष झामुमो के कई और नेता भी उम्र के उस दौर में पहुंच चुके हैं, जहां उनसे अति सक्रियता की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। लेकिन दूसरी ओर पार्टी के पास नेतृत्व की नई पौध, नई क्षमता और नई ऊर्जा को प्रतिबिंबित करने वाले कई शख्स सामने आ चुके हैं। विधायक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन संगठन में ऊंची छलांग लगाने की तैयारी में हैं। पहले लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन ने अपनी नेतृत्व, वक्तृत्व और रणनीतिक क्षमता का परिचय दे चुकी हैं। संगठन उनसे बड़ी उम्मीदें लगाए बैठा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने स्थापना काल से लेकर राज्य निर्माण होने तक वृहद झारखंड की परिकल्पना की थी। पार्टी चुनाव तो अभी भी बिहार , बंगाल और ओडि़शा में लड़ती है, लेकिन जो दमदार उपस्थिति होनी चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। झामुमो को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए कई अन्य राज्यों में चुनाव लड़कर ज्यादा से ज्यादा वोट जितने होंगे। ऐसे में झामुमो को उन राज्यों में अपना सांगठनिक विस्तार कर मजबूती प्रदान करना होगा। इस महाधिवेशन में झामुमो ऐसे गंभीर विषय पर संकल्प लेता दिख सकता है। एक आखिरी और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि झारखंड में लगातार दो बार सत्तारूढ़ होने और लोकसभा में सीटें बढऩे के बाद से झामुमो के हौसले बुलंद हैं। इसके नेताओं और कार्यकर्ताओं के उत्साह से लबरेज हैं। ऐसे में झामुमो अपने कार्यकर्ताओं के इस उत्साह को भुनाएगा और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल कर दबाव बनाएगा। वैसे अधिवेशन के बाद कई बातें निकल कर बाहर आएंगी।