अशोक कुमार
बात अस्सी और नब्बे दशक की है। उस समय झामुमो का झारखंड आंदोलन पीक पर था। सरल व सीधे स्वभाव वाले दाढ़ीवाले नेता गुरूजी को राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में प्राय:सभी लोग जानते थे। गुरूजी विधायक थे पर पटना बहुत कम रहते थे। वे प्राय: झारखंड में ही आंदोलनात्मक कार्यों में व्यस्त रहा करते थे। मैं उन दिनों पटना में युवा पत्रकार था और देश की प्रसिद्ध पत्रिका धर्मयुग के लिए काम कर रहा था। एक दिन बिहार विधानसभा लॉबी में मैंने गुरूजी से कहा कि मैं धर्मयुग के लिए आपका इंटरव्यू करना चाहता हूं। कब और कहां आ जाऊं। पहले तो वे इंटरव्यू के नाम पर घबराए ओैर हंसते हुए मेरे सवाल को टालते हुए अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़ लिया। उनके पुराने परम सहयोग सूरज मंडल भी साथ थे। सूरज मंडल के कहने पर वे इंटरव्यू के लिए तैयार हो गए। इंटरव्यू जब धर्मयुग में छपा तो दोचार दिनों के बाद गुरूजी विधानसभा के कैरिडोर में मुझे देखते ही कहा , अशोकजी आपने कमाल का इंटरव्यू छापा । दिल्ली सहित कई राज्यों से मुझे फोन आ रहे हैं। हार्डिंग रोड के मेरे आवास पर कल आइए साथ ही शाकाहारी भोजन करेंगे। विहार विधानसभा में सत्र के दौरान गुरूजी सदन में मौजूद तो रहते थे लेकिन बोलते नहीं थे। उस समय झामुमो विधायक दल के नेता प्रो स्टीफन मरांडी हुआ करते थे ।
पार्टी की ओर से वही बोलते थे। गुुरुजी से मेरी मुलाकात प्राय: विधानसभा में या किसी कार्यक्रम में ही होती थी। वे दूर से ही देखते हुए मेरा हालचाल पूछा करते थे और धर्मयुग के इंटरव्यू की चर्चा जरूर करते थे। । गुरूजी को विधानसभा में सभी दलों के नेता काफी इज्जत करते थे। ज्ञान रंजन से उनकी बहुत पटती थी और उस जमाने के मशहूर फोटोग्राफर स्व किशन मुरारी किशन से भी उनकी जिगरी दोस्ती थी। किशनजी उनके झारखंड आंदोलन की तस्वीरे देश विदेश के मैगजीन व अखबारों में छापा करते थे। सदन के अंदर या बाहर गुरूजी को कभी उग्र रूप में अन्य नेताओं की तरह नहीं देखा। नब्बे के दशक में जब मैं भागलपुर में हिन्दुस्तान का ब्यूरो चीफ था तो पूरे संताल परगना मेरे क्षेत्राधिकार में था और मैं खासकर चुनाव के दिनों में पूरे संताल परगना का दौरा करताथा। जब मैं उन दिनों संताल परगना के आदिवासी गांवों में जाता था और मतदाताओं से पूछता था कि आप किस पार्टी व कैंडीडेट को वोट देंगे तो एक ही जबाव सुनने को मिलता था कि हम पार्टी व कैंडिडेट नहीं जानते हम तीर धनुष पर वोट करते आए हैं और आगे भी उसी चिह्न पर वोट करेंगे क्योंकि हमारे एक ही नेता हैं वे हैं गुरूजी।
वह हमारे भगवान हैं। हम अपने भगवान को पूजते हैं तो वोट भला किसी दूसरे को क्यों देंगे? गुरूजी के प्रति वर्षों पहले यह स मान मैं आज भी जब संथाली बस्तियों में जाता हूं तो वह कायम है। 2 फरवरी को हर साल दुमका में पार्टी का स्थापना दिवस मनाया जाता है। वह कार्यक्रम आधी रात तक चलता है। दो बार मैं भी उस कार्यक्रम में शामिल हुआ। मैंने देखा चाहे रात कितनी भी बीत जाए जबतक गुरूजी का भाषण नहीं हो जाता है तबतक कार्यक्रम में बैठे लोग ठस से मस नहीं होते हैं। यह है गुरूजी के प्रति उनके समर्थकों का प्यार भरा आर्कषण। जनता का ऐसा आक र्षण जननेता क र्पूरी ठाकुर और अटल बिहारी बाजपेयी की सभााओं में ही मैंने देखा था। सचमुच, गुरूजी किसी बड़े जननेता से कम नहं थे। हम केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि गुरूजी को जननायक की उपाधि से विभूषित किया जाए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।