राज्य और राजनीति
संदर्भ : चंपाई और लोबिन का भाजपाई होना
चंदन मिश्र
झारखंड में विधानसभा चुनाव अभी दो महीने दूर है, लेकिन नेताओं का पाला बदल शुरू हो चुका है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, दल बदल होना लाजिमी है। झारखंड में ताजा तरीन दल-बदल सामान्य और छोटी राजनीतिक घटना नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा से उसके बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ना और भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का मतलब झामुमो के लिए बड़ा सियासी नुकसान बताया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन चार दशक से झामुमो के साथ रहे। कोल्हान क्षेत्र में चंपाई सोरेन ने अपना एक प्रभाव क्षेत्र बनाया है। सरायकेला से लगातार चुनाव जीतने के साथ साथ झामुमो की हर सरकार में मंत्री पद पर रहे। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। हेमंत सोरेन जब जेल से बाहर आए तो चंपाई सोरेन को अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया। यानी चंपाई सोरेन संगठन और सरकार में शीर्ष या उसके समकच्छ पदों को सुशोभित किया। कोल्हान के जनजातीय क्षेत्र में चम्पाई सोरेन के राजनीतिक प्रभाव को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ने के बाद डैमेज कंट्रोल के लिए घाटशिला के संताल विधायक रामदास सोरेन को कैबिनेट में शामिल कर चंपाई सोरेन को आवंटित विभाग दे दिए। लेकिन इसका यह अर्थ लगाना सही नहीं होगा कि रामदास सोरेन मंत्री बनने के बाद भी चंपाई सोरेन की कमी को पूरा कर देंगे। चंपाई सोरेन के सामने रामदास सोरेन छोटे और कम प्रभावशाली नेता हैं। उन्हें बतौर मंत्री काम करने के लिए इतना कम वक्त मिला है कि जब तक वह मंत्रालय का काम समझेंगे, तब तक चुनाव आ जायेगा। वैसे भी रामदास सोरेन का अभी तक कोई ऐसा प्रभावशाली काम या राजनीतिक अंदाज नहीं दिखा है, जिससे यह कह देना कि वह चंपाई सोरेन को करारा जवाब दे पाएंगे। कोल्हान क्षेत्र में झामुमो के सभी विधायक सिर्फ अपने-अपने क्षेत्र में ही प्रभाव है, उससे बाहर जाकर कभी किसी ने उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं किया है। जबकि चंपाई सोरेन का पूरे कोल्हान में राजनीतिक दबदबा है। वैसे चुनाव के समय यह देखना दिलचस्प होगा कि चंपाई सोरेन भाजपा के लिए कितना कारगर और झामुमो के लिए घातक सिद्ध हो पाते हैं।
कोल्हान के बाद संताल परगना के वरिष्ठ झामुमो नेता लोबिन हेंब्रम ने भी भाजपा का कमल फूल थाम लिया। लॉबिन हेंब्रम पिछले चार साल से झामुमो सरकार के कामकाज से खुश नहीं रहे। अव्वल तो उनकी सरकार में उपेक्षा हुई। उसके बाद भी सरकार में उनकी बातें कभी सुनी ही नहीं गई। लॉबिन हेंब्रम बेबाक और सपाट बोलने वाले नेताओं में जाने जाते हैं। संताल परगना के एक दबंग आदिवासी नेता की उनकी पहचान रही है। वह विधानसभा के अंदर और बाहर लगातार सरकार पर हमलवार रहे। सरकार से नाराजगी का सबब तो यह रहा कि लोकसभा चुनाव में लोबिन हेंब्रम झामुमो के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ गए। लॉबिन हेंब्रम भाजपा में आने के बाद अपनी विधानसभा सीट बोरियो के अलावा अगल बगल की सीटों पर भी झामुमो विरोधी वातावरण बनाने की कोशिश करेंगे। ऐसे में भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। साहिबगंज जिले की तीन विधानसभा सीटों में राजमहल अभी भाजपा (अनंत ओझा) के पास, बरहेट विधानसभा सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास तथा बोरियो खुद लोबिन हेंब्रम की सीट रही है। लोबिन हेंब्रम बड़बोले और उग्र मिजाज के नेता हैं। झामुमो विरोधी उनकी आवाज पूरे संताल परगना तक फैलेगी। पहले तो लोबिन हेंब्रम दबे छिपे ही बोलते थे, अब नई पार्टी में आकर खुलकर बोलेंगे। उनके इस अंदाज को भाजपा अपने पक्ष में और झामुमो के खिलाफ किस तरह और कितना उपयोग कर पाती है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।
बहरहाल भाजपा की इस चाल से मात खाए झामुमो अपने नुकसान की भरपाई कैसे करता है, यह आनेवाला वक्त बताएगा। दल बदल तथा शह और मात के खेल में कौन जीता, कौन हारा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा। लेकिन फिलहाल भाजपा के हौसले अभी बुलंद हैं, जबकि झामुमो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को मात देने की रणनीति बनाने में जुटा हुआ है।
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