रामा कान्त मालवीय, शेखर सुमन
देवघर:-बाबा बैद्यनाथ मंदिर में अनेकों ऐसी परंपरा निभाई जा रही है। इस किसी ज्योतिर्लिंग में निभाया जा रहा है। भारत के किसी मंदिर में ऐसा परंपरा नहीं है,जो कि सिर्फ देवघर बैद्यनाथ धाम मंदिर में जी हां यहां कई ऐसी परंपरा जैसे भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर में गठबंधन सभी मंदिरों के शिखर पर पंचशूल,थापा प्रथा इत्यादि है।जो सभी ज्योतिर्लिंग में देखने को नहीं मिलता है। इसी के साथ यहां पर होली के दिन एक अनोखी परंपरा को निभाया जा रहा है।वह परंपरा है हरिहर मिलन.हरिहर मिलन का क्या महत्व है और किस दिन हरिहर मिलन होता है जानते हैं देवघर बैद्यनाथ मंदिर के स्टेटपुरोहित श्रीनाथ पंडित से?
क्या कहते है बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थपुरोहित :-
बैद्यनाथ मंदिर के स्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित ने कहा कि यहां कहीं ऐसी परंपराएं जो सदियों से चलती आ रही है।देवघर के बैद्यनाथ मंदिर होली के दिन हरिहर मिलन कराया जाता है। यानी हरि भगवान विष्णु और हर भगवान महादेव का मिलन होता है। हरिहर मिलन फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन ही होता है।उस दिन नगर वासी भगवान शिव और श्री कृष्ण के मंदिर में अबीर गुलाल अर्पण चढ़ाए जाते हैं।इस साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को ही हरीहर मिलन होता है।
क्यूँ कराया जाता है हरी और हर का मिलन :-
तीर्थपुरोहित श्रीनाथ पंडित बताते हैं की मान्यताओं के अनुसार रावण ने तब कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और अपने लंका ले जाने के लिए आग्रह किया।भगवान शिव भी रावण के साथ लंका जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन एक शर्त पर की रास्ते में जहां भी शिवलिंग को रखा जाएगा मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा. रावण इस सर्त को मानकर जब भगवान शिव के शिवलिंग को लंका ले जा रहा था तभी बीच मे वर्तमान स्थान देवघर में रावण को लघु शंका लगा। उसी जगह पर भगवान श्री कृष्णा बैजू बालक के रूप में गाय चरा रहे थे।रावण ने शिवलिंग को बैजू के हाथ में सोपते हुए लघु शंका करने चला गया।वहीं बैजू ने शिवलिंग को उसी जगह स्थापित कर दिया।वह दिन था फाल्गुन माह का पूर्णिमा तिथि.उसी दिन से देवघर के बैद्यनाथ मंदिर मे हरी हर मिलन कराया जाता है।
क्युकी फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को सुबह 10 बजकर 23 मिनट में हो रहा है और समापन अगले दिन यानी दोपहर 12 बजकर 14 मिनट में हो रहा है। चन्द्रदय के अनुसार हीं पूर्णिमा का व्रत रखे और उसी दिन हरी हर मिलन ।
-12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है। जहां पर यह अनूठी परंपरा निभाई जाती है जहां पर हरी और हर का मिलन कराया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।जिसका निर्वहन आज भी बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। गुरुवार बाबा मंदिर का पट 4:00 शाम को बंद कर दिया गया। इसके बाद 4:30 बजे फिर से बाबा मंदिर का पट खोला गया।इसके बाद बाबा मंदिर प्रशासनिक भवन स्थित राधा कृष्ण मंदिर से पालकी पर राधा कृष्ण को बिठाकर बाबा मंदिर की परिक्रमा करते हुए।पश्चिम द्वार से नगर भ्रमण करते हुए चौक चौराहा पर मालपुआ का भोग लगाकर भक्तों के बीच वितरण किया जा रहा था। ढोल नगाड़ा बजाते हुए भक्त जय कन्हैया लाल की हाथी घोड़ा पालकी का नारा लग रहे थे। पूरे नगर भ्रमण के बाद पालकी को आजाद चौक स्थित दोल मंच पर ले जाया गया। जहां पर राधा कृष्ण की मूर्ति को झूले पर बिठाकर भंडारी इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु राधा कृष्ण को झूला झूल कर अबीर गुलाल अर्पित किया देर रात्रि शुभ मुहूर्त पर होलिका दहन विशेष पूजा शुरू की गई।जिसमें पुजारी अचार्य के द्वारा जो की आहुति दी गई। होलिका दहन के बाद आजाद चौक से पालकी में बिठाकर राधा कृष्ण की मूर्ति को बाबा मंदिर भक्तों के द्वारा पालकी लाई गई।जिसमें राधा रानी को प्रशासनिक भवन स्थित राधा कृष्ण मंदिर में स्थापित किया गया।वहीं श्री हरि को डोली से उतर कर सीधे बाबा मंदिर के गर्भ गृह ले जाया गया।जहां पर बाबा बैद्यनाथ पर उन्हें रखकर या परंपरा निभाई गई।इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अबीर गुलाल चढ़कर होली का शुभारंभ किया शास्त्रों में यह वर्णित है कि भगवान विष्णु के द्वारा बाबा बैजनाथ की स्थापना की गई थी और इस परंपरा को कायम रखने के लिए हरी और हर का मिलन यहां पर कराया जाता है और इस परंपरा को निभाने के लिए पूरे शहर वासी के साथ-साथ देश के अलग-अलग कोने से आए श्रद्धालुओं के द्वारा अबीर गुलाल अर्पित कर यह उत्सव मनाया जाता है।बैद्यनाथ धाम की होली अबीर गुलाल चढ़ाने के बाद यहां से शुरू हो जाती है। जैसे ही हरिहर मिलन कराया गया।चारों ओर हरिहर का जयकारा लगाते हुए लोग होली के गीत गाने लगे लोग एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर होली की बधाई देते हुए नजर आए शुक्रवार को मनाई जाएगी देवघर में रंगों की होली।