चंदन मिश्र
घाटशिला विधानसभा के उपचुनाव के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के दो दिग्गज पुत्र मैदान में उतर चुके हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन और पूर्व शिक्षा मंत्री दिवंगत रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन उपचुनाव में आमने-सामने होंगे। घाटशिला विधानसभा के पिछले पांच चुनावों के परिणामों पर नजर डालें को अलग राज्य होने के पहले वर्ष 2000 में हुए चुनाव और 2014 के विधानसभा चुनाव को छोड़कर सभी चुनाव झामुमो के रामदास सोरेन ने जीते। यानी घाटशिला विधानसभा क्षेत्र झामुमो का सियासी गढ़ बन चुका है और इसे भेदना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा के बाबूलाल सोरेन और झामुमो के सोमेश सोरेन ने अपना-अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। पूर्व मंत्री और झामुमो विधायक रहे रामदास सोरेन के असामयिक निधन से खाली हुई घाटशिला की सीट पर उपचुनाव कराया जा रहा है। वैसे तो दोनों उम्मीदवार चुनावी अखाड़े के नए खिलाड़ी हैं, लेकिन बाबूलाल सोरेन 2024 के विधानसभा चुनाव में घाटशिला सीट से चुनाव लड़कर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। बाबूलाल सोरेन झामुमो के वरिष्ठ नेता रामदास सोरेन के हाथों पराजित हो गये थे। इस बार भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन पर एक बार फिर भरोसा जताया है। चंपई सोरेन का कोल्हान क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है। झामुमो छोड़कर भाजपा में आनेवाले चंपई सोरेन ने 2024 के विधानसभा चुनाव में सरायकेला विधानसभा की अपनी सीट तो निकाल ली थी, लेकिन अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन को घाटशिला में जीत नहीं दिला पाए थे। पुत्र के हार की उन्हें कसक जरूर होगी। इसलिए एक बार फिर भाजपा नेतृत्व से आग्रह कर चंपई सोरेन ने अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन को मैदान में उतारा है। उनके लिए भी घाटशिला उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है। चंपई सोरेन पूरे जी-जान से यहां डटे हुए हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी सहित कई बड़े नेता लगातार घाटशिला का दौरा कर रहे हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुलेआम अपने प्रतिद्वंदियों को ललकारते हुए कहा है कि विपक्ष से चाहे जितने मुख्यमंत्री मैदान में आ जाएं वह अकेला मुख्यमंत्री चुनाव जिताने के लिए काफी हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आत्मविश्वास से लबरेज हैं और लगातार दो विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनका हौसला बुलंद है। घाटशिला विधानसभा सीट पर हार-जीत से सूबे का सियासी समीकरण बहुत हेरफेर नहीं होनेवाला है। कम से कम सरकार की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन सत्तारूढ़ दल का उम्मीदवार चुनाव में हार जाये तो इसका संदेश गलत जायेगा।
इसलिए सत्तारूढ़ दल कोई ऐसा अवसर नहीं देना चाहता है जिससे विपक्षी दलों को मौका मिले। झामुमो के दिवंगत नेता रामदास सोरेन घाटशिला से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में झामुमो के रामदास सोरेन को 98,356 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के बाबूलाल सोरेन को 75,910 वोट मिले थे। पिछले चुनाव में जयराम महतो की पार्टी जेकेएलकेएम से रामदास मुर्मू 8,092 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। इस बार जयराम महतो फिर से अपना उम्मीदवार मैदान में उतार चुके हैं। झारखंड विधानसभा के 2019 के चुनाव में झामुमो के रामदास सोरेन को 63,531 वोट मिले थे, जिन्होंने भाजपा के लखन चंद्र मार्डी को 4 फीसदी वोटों के अंतर से चुनाव हराया। मार्डी को 56,807 वोट आए थे। इस चुनाव में कांग्रेस छोड़कर आजसू पार्टी से लडऩेवाले प्रदीप बलमुचू को 31910 वोट मिले थे। हालांकि प्रदीप बलमुचू चुनाव हारने के बाद कांग्रेस में वापस लौट आए। इस उपचुनाव में भी कांग्रेस नेता प्रदीप बलमुचू अपनी ओर से चुनाव लडऩे की पेशकश कर चुके थे। लेकिन कांग्रेस के झारखंड प्रभारी के राजू ने पहले ही झामुमो उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा कर प्रदीप बलमुचू के इरादे पर पानी फेर दिया। 2014 का विधानसभा चुनाव झामुमो के रामदास सोरेन भाजपा के लक्ष्मण टुडू के हाथों हार चुके थे।लक्ष्मण टुडू को 52506(32.48 प्रतिशत) वोट मिले थे। झामुमो के रामदास सोरेन को 46103 (28.52 प्रतिशत) वोट मिले।
इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रदीप बलमुचू की बेटी सिंड्रेला बलमुचू को मैदान में उतारा था। सिंड्रेला को 36672 ( 22.69 प्रतिशत) वोट मिले थे। यानी झामुमो-कांग्रेस और भाजपा -आजसू पार्टी जब जब अलग होकर लड़े, उनके विपक्षी दलों को फायदा मिला। जिस तरह 2014 के विधानसभा चुनाव में झामुमो और कांग्रेस अलग-अलग लड़े, भाजपा को इसका फायदा हुआ और भाजपा चुनाव जीत गई। उसी तरह विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा से अलग होकर आजसू पार्टी लड़ी, जबकि झामुमो और कांग्रेस मिलकर लड़े तो झामुमो को इसका लाभ हुआ। झामुमो के रामदास सोरेन की जीत हुई। इसका लब्बोलुआब यह है कि घाटशिला विधानसभा क्षेत्र पहले कांग्रेस और बाद में झामुमो का सियासी गढ़ बन चुका है। इस गढ़ को भेदना भाजपा और खासकर पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के लिए आसान नहीं होगा। यदि यह चमत्कार हुआ तो यह चंपई सोरेन की बहुत बड़ी जीत होगी और सत्तारूढ़ दलों की बहुत बड़ी हार। अब अगले महीने 11 नवंबर को होनेवाले मतदान पर सबकी नजर होगी। ऊंट किस करवट बैठता है, यह देखना दिलचस्प होगा।