राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में जातीय गणना कराने की घोषणा कर सबको स्तब्ध कर दिया। आजादी के बाद देश में दूसरी बार जातीय गणना होगी। विपक्षी दल खासकर कांग्रेस पार्टी जातीय गणना को लेकर पिछले डेढ़ 2 वर्षों से देश की चुनावी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बनाया था। लेकिन कांग्रेस का यह मुद्दा न लोकसभा में चला ना किसी भी राज्य की विधानसभा चुनाव में। फिर भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने भाजपा सरकार को कई बार और लगातार घेरने की पूरी कोशिश की। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनगणना करने के साथ ही जातीय गणना करने की घोषणा कर सभी राजनीतिक दलों को एक बारगी चुप करा दिया है। हालांकि सभी विपक्षी दल अब इस बात का श्रेय लूटने में लगे हैं कि उनके कहने पर ही केंद्र सरकार जातीय करना करने पर सहमत हुई है। विपक्षी दलों का यह दावा कितना सही होगा, या इसका फायदा सत्तारूढ़ भाजपा तथा एनडीए को मिलेगा, यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा।
झारखंड में जातीय गणना क्या यहां की सियासत बदल देगी, यह सवाल हर आम और खास के मन मस्तिष्क में छा गया है। जातीय कराने के अंतरनिहित तत्वों पर अगर गंभीरता पूर्वक विचार करें तो यह साफ हो जाएगा की जातीय गणना से झारखंड के सामाजिक ताने-बाने का नया स्वरूप दिखाई पड़ेगा।
झारखंड को अभी आदिवासी बहुल राज्य कहा जाता है। यहां पांचवी अनुसूची लागू है। राज्य के 24 जिलों में से 13 जिले, जिसमें कुछ आंशिक और शेष पूर्ण रूप से अनुसूचित जिले में शामिल हैं, अनुसूचित क्षेत्र कहलाते हैं। लेकिन जातीय गणना के बाद यहां की जातीय आबादी का स्वरूप बदल जाएगा। झारखंड में ओबीसी की आबादी अपेक्षाकृत अन्य जातियों से कहीं ज्यादा है। राज्य में कुर्मी समुदाय की बहुलता है, जो आदिवासी समुदाय की तुलना में कहीं ज्यादा है। राष्ट्रीय जनगणना जब शुरू होगी तो इसका असर झारखंड की वर्तमान जातीय संरचना के साथ-साथ अगले साल होने वाले परिसीमन पर भी साफ दिखाई पड़ेगा। आबादी के मुताबिक झारखंड में अभी अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए विधानसभा की 28 सीटें आरक्षित हैं। वहीं लोकसभा की 14 सीटों में आबादी के अनुपात में आदिवासियों के लिए पांच लोकसभा सीट आरक्षित हैं। लेकिन जब जातीय गणना के परिणाम सामने आएंगे और जनगणना के अनुपात में ओबीसी की आबादी अपेक्षाकृत ज्यादा होगी तब विधानसभा लोकसभा सीटों की संख्या जातीय अनुपात के अनुसार बदल जाएंगी।
जातीय गणना को लेकर कांग्रेस राजद और झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे भी विपक्षी दल, जातीय गणना कराने की घोषणा से आज भले ही प्रफुल्लित हो रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि जातीय गणना के नए आंकड़े उन्हें परेशानी में डाल देंगे। झारखंड में कुर्मी जाति की बहुलता है और ओबीसी का बड़ा हिस्सा होने के कारण यह लाभ भारतीय जनता पार्टी और आजसू जैसी पार्टियों को मिल सकती है। वहीं कुर्मी समुदाय की राजनीति करने वाले छोटे बड़े नेताओं को भी इसका लाभ मिल सकता है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस पार्टी और राजद जैसे राजनीतिक दल अल्पसंख्यक समुदाय के अलावा आदिवासी तथा यादवों की आबादी पर अपनी राजनीति करते हैं। किंतु नई जनगणना और जातीय जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन में जब लोकसभा तथा विधानसभा की सीटें समानुपातिक ढंग से बढ़ेंगी या घटेंगी तब इन दलों को अपने राजनीतिक नफा नुकसान का अनुमान लगेगा। आनेवाला वक्त बताएगा कि जातीय गणना से झारखंड की सियासत में कौन दल फायदे में रहेगा, किसे नुकसान होगा।