संताल एक्सप्रेस
बरहरवा-नगर पंचायत बरहरवा क्षेत्र अंतर्गत कुशवाहा टोला में इस बार भी दुर्गा पूजा की धूम है.यह पूजा गांव की पहचान और गर्व का विषय बन चुकी है. खास बात यह है कि यहां की पूजा का शुभारंभ साधारण ग्रामीण चंदा से वर्ष 1975 में हुआ था. उस समय कुशवाहा टोला के ग्रामीणों ने महसूस किया कि मुख्य पूजा समिति में उनके टोला का प्रतिनिधित्व और योगदान उपेक्षित हो रहा है.इस अनादर की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी अलग पूजा शुरू करने का निश्चय किया. इसी संकल्प से कुशवाहा टोला की दुर्गा पूजा की परंपरा आज तक जीवित है.पूजा समिति के वरिष्ठ सदस्य धीरेंद्रर महतो बताते हैं कि जब हमने इस पूजा की शुरुआत की थी तो पास में पैसा नहीं था. गांव-गांव घूमकर चंदा इकट्ठा किया गया और उसी से प्रतिमा बनाई गई.उस समय साधारण सजावट होती थी. लेकिन लोगों की आस्था बहुत बड़ी थी.इस पूजा की एक विशेष पहचान इसकी मूर्ति-शिल्पकला भी रही है. शहर और आसपास के लोग कुशवाहा टोला की प्रतिमाओं को देखने विशेष रूप से पहुंचते हैं. मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई प्रतिमाएं वर्षों से अपनी भव्यता और कलात्मकता के कारण आकर्षण का केंद्र रहती हैं.मूर्ति कलाकार गणपति पाल मालदा पश्चिम बंगाल का कहना है.कुशवाहा टोला की प्रतिमा बनाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है. यहां के लोग कला का सम्मान करते हैं और इसी वजह से हम हर साल नये प्रयोग करके प्रतिमा को और आकर्षक बनाते हैं.पूजा पंडाल की साज-सज्जा भी यहां के लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है.शुरुआत में जहां मिट्टी और बांस की झोपड़ीनुमा सजावट होती थी. वहीं अब समय के साथ यह पंडाल आधुनिक डिजाइन और रंग-बिरंगी लाइटिंग से सुसज्जित किया जाता है. इस बार भी पंडाल आकर्षण का केंद्र रहेगा. शाम ढलते ही पंडाल की रौनक देखते ही बनेगी.समिति के वर्तमान अध्यक्ष धीरेद्रर महतो ने कहा हमारा मकसद केवल पूजा करना नहीं बल्कि समाज को जोड़ना भी है. यहां हर वर्ग और हर आयु के लोग मिलकर आयोजन करते हैं. यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है.स्थानीय युवाओं की सक्रियता भी इस आयोजन में सराहनीय रहती है. प्रतिमा स्थापना से लेकर पंडाल सजावट, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक में युवा वर्ग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. युवा सदस्य सौरभ कुशवाहा ने बताया कि हम सब मिलकर इस पूजा को अपने टोला की शान बनाएं रखना चाहते हैं. आज की पीढ़ी को भी हमारी परंपरा से जोड़ना जरूरी है.ग्रामीणों का मानना है कि कुशवाहा टोला की दुर्गा पूजा केवल पूजा-पाठ का आयोजन नहीं है. बल्कि यह उनकी अस्मिता और आत्मसम्मान का प्रतीक है. 1975 में शुरू हुई यह परंपरा अब 50 वर्ष पूरे करने की ओर बढ़ रही है और हर साल इसकी भव्यता नए आयाम गढ़ रही है.आज जब लोग यहां की सजावट और प्रतिमाओं की प्रशंसा करते हैं तो ग्रामीणों को गर्व होता है कि साधारण चंदा से शुरू हुई उनकी पूजा आज पूरे इलाके की शान बन चुकी है.