पटना । बिहार में ताड़ी पर प्रतिबंध हटाने की मांग ने फिर जोर पकड़ा है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और एनडीए सहयोगी चिराग पासवान दोनों ने इसे लेकर आवाज़ उठाई, जिससे साफ हो गया है कि राज्य की राजनीति में यह मुद्दा सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि चुनावी भी हो चुका है। तेजस्वी ने हाल ही में पटना में पासी समुदाय की सभा में कहा कि 2025 में महागठबंधन की सरकार बनने पर ताड़ी को निषेध कानून से बाहर किया जाएगा और इसे उद्योग का दर्जा दिया जाएगा।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2016 में नीतीश कुमार से उन्होंने ताड़ी को शराबबंदी से बाहर रखने की मांग की थी, जिसे अनसुना कर दिया गया। राज्य में शराबबंदी लागू होने से पहले अनुमानित 5 लाख पासी ताड़ी निकालने और बेचने का पारंपरिक कार्य करते थे। अब यह समुदाय आजीविका के संकट से जूझ रहा है। बिहार में पासी समुदाय, चुनावी समीकरणों में भले छोटा दिखे, लेकिन सामाजिक प्रभाव और परंपरागत व्यवसाय को लेकर राजनीतिक दबाव बना रहा है।
एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी तेजस्वी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि ताड़ी एक प्राकृतिक उत्पाद है और इसे शराब की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही वे एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन राज्य सरकार में नहीं हैं और इसलिए इस विषय पर अपनी स्वतंत्र राय रखते हैं।
इस मांग को लेकर जेडीयू और बीजेपी ने आरजेडी और चिराग पासवान दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने आरजेडी पर “यू-टर्न” लेने का आरोप लगाया और चुनौती दी कि पार्टी महिला मतदाताओं से ताड़ी पर बैन हटाने को लेकर समर्थन जुटाकर दिखाए।
बीजेपी प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि यह सिर्फ पासी वोटों को साधने की कोशिश है। उन्होंने याद दिलाया कि 2016 में शराबबंदी कानून ध्वनिमत से पास किया गया था, और आरजेडी ने भी इसका समर्थन किया था। तेजस्वी ने शराबबंदी की आलोचना करते हुए कहा था कि इससे अब तक 350 से ज्यादा मौतें जहरीली शराब से हो चुकी हैं, 14 लाख से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं और जेलें जरूरत से ज़्यादा भरी हैं। उनका दावा है कि ये आंकड़े इस नीति की विफलता को दर्शाते हैं।
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भी पहले कहा दिया था कि उनकी पार्टी सत्ता में आते ही शराबबंदी खत्म करेगी और उससे होने वाले राजस्व का उपयोग शिक्षा में करेगी। ताड़ी को लेकर उठी बहस अब सिर्फ परंपरा या रोजगार की बात नहीं रही, यह 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले सामाजिक न्याय, आजीविका और राजनीतिक ध्रुवीकरण का अहम मुद्दा बनता जा रहा है।