चंदन मिश्र
झारखंड की पांचवीं विधानसभा का आखिरी सत्र बहुत कड़वी यादें छोड़ गया। विधानसभा के आखिरी सत्र का आखिरी दिन शुक्रवार को संपन्न हो गया, लेकिन झारखंड के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में यह सत्र एक काला अध्याय के पन्ने के तौर पर जुड़ गया। पूरे सत्र में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका सवालों के घेरे में रही। यूं तो अध्यक्ष रबिंद्र नाथ महतो की कार्य प्रणाली से आसन की प्रतिष्ठा पहले से ही शंका के घेरे में रही है, लेकिन मानसून सत्र ने आसन की निष्पक्षता पर प्रश्रचिह्न लगा दिया। पूरे सत्र में अध्यक्ष की निष्पक्षता का तराजू पूरी तरह सत्ता पक्ष की ओर ही झुका रहा। अध्यक्ष विपक्षी सदस्यों के प्रति दुराग्रह से ग्रसित दिखे। विपक्ष के सदस्य जनहित से जुड़े कुछ सवालों को लेकर जब सदन के नेता से जवाब मांग रहे थे, तब अध्यक्ष नेता सदन से जवाब दिलाने की बजाय उन्हें बोलने से रोकने की जुगत में लगे रहे। अध्यक्ष पूरे सत्र में सिर्फ सत्ता पक्ष की तरफदारी करने में ही लगे दिखे। नेता प्रतिपक्ष को बोलने से बार – बार रोकना, अन्य विपक्षी सदस्यों को बोलने से रोकना, टोकना और ठीक उलट सत्ता पक्ष के किसी भी सदस्य को बिना अनुमति के कभी भी बोलने की छूट देना, अध्यक्ष रबिंद्र नाथ महतो की आदत में शुमार दिखी। झारखंड विधानसभा के इतिहास में पिछले चौबीस साल के दौरान रबिंद्र नाथ महतो पहले अध्यक्ष साबित हुए जो सदन के अंदर और बाहर खुलेआम सत्ताधारी दल के प्रवक्ता की तरह तरफदारी करते दिखे। उन्होंने आसन से खुलेआम सरकार की तरफदारी और विपक्ष की निंदा करते दिखे। सदन से बाहर लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करते दिखे। अध्यक्ष ने विधानसभा में खुलेआम विधायी परंपराओं की धज्जियां उड़ाईं। उन्होंने खूब मनमानी की और विपक्ष के एक सदस्य बाबूलाल मरांडी को तो पूरे पांच साल तक बोलने का मौका तक नहीं दिया। यहां तक कि उनके ध्यानाकर्षण जैसी सूचना तक स्वीकार नहीं की। इस मामले में अपने राजनीतिक आला कमान को खुश करने के लिए अध्यक्ष रबिंद्र नाथ महतो ने सारी विधायी परंपराओं को ध्वस्त कर दिया। मानसून सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए कई गंभीर सवाल उठाए। नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी ने सदन में कहा भी कि मुख्यमंत्री को जनता के इन सवालों का जवाब सदन में देना चाहिए।सरकार बनने के पहले उनकी पार्टी ने जनता से कई वायदे किए थे, उनमें से कोई वायदे पूरे नहीं किए। लेकिन अध्यक्ष रबिंद्र नाथ महतो इस जुगत में लगे रहे कि कैसे विपक्षी दल को सवाल करने से रोका जाए, विपक्ष ने गुरुवार को दिन भर की कार्यवाही समाप्ति के बाद सदन में डटे रहे और वेल में सभी सदस्यों ने डेरा डाला। विपक्षी सदस्य मुख्यमंत्री से तत्काल जवाब चाहते थे। इसमें कहां से असंसदीय बातें आती हैं। विपक्ष का यह नैतिक धर्म है कि जनहित के सवालों को लेकर सरकार से जवाब मांगे। अध्यक्ष का यह संसदीय धर्म है कि वह सत्ता पक्ष और विपक्ष को समान रूप से अवसर प्रदान कर सदन का सफल संचालन करें। लेकिन रबिंद्र नाथ महतो ऊपरी तौर भले ही भोले भाले अंदाज में पेश आएं हों, पर अंदर से उन्होंने निष्पक्षता दिखाने में कोई उदारता नहीं दिखाई। उपर से विपक्ष के 18 विधायकों को एक साथ निलंबित कर दिया। विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया लेकिन कई अनगिनत सवालों को अपने पीछे छोड़ गया। ये सवाल झारखंड के संसदीय लोकतंत्र के लिए हमेशा याद किए जाएंगे और उसकी रक्षा का संकल्प लेनेवालों के चेहरे भी बेपर्द करेगा। लेखक हिन्दुस्तान रांची के पूर्व सहायक संपादक हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।