पटना । सीएम नीतीश कुमार और उनकी पार्टी लंबे समय से राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रही थी। लेकिन, मौजूदा नियमों के मुताबिक बिहार जैसे राज्य को विशेष दर्जा देना संभव नहीं था। ऐसे में मोदी सरकार ने 2024 के आम बजट में बिहार के लिए खजाना खोल दिया। बजट में बिहार में विकास कार्यों और बाढ़ नियंत्रण के लिए करीब 64 हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा हुई। इसके बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को समर्थन देने के बदले ऐसा लगता है कि एक-एक पाई का हिसाब वसूल लेना चाहते हैं। केंद्र सरकार की इस घोषणा से नीतीश कुमार खूब गदगद हुए। उनकी यह वर्षों पुरानी मांग पूरी हो गई। लेकिन, बीते एक हफ्ते के भीतर ही राजनीति ने बड़ी करवट ले ली है। बिहार में समाजवाद का चेहरा नीतीश कुमार एक नई मांग के साथ केंद्र सरकार के सामने खड़े हैं। यह एक ऐसी मांग है जिसने केंद्र सरकार को धर्म संकट में डाल दिया है।
दरअसल, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को एक बड़ा झटका दिया। राज्य सरकार ने पिछले साल राज्य में जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया। उस वक्त राज्य में नीतीश कुमार राजद के समर्थन से मुख्यमंत्री थे। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के गठन की पहल की। इसी दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी आरक्षण सीमा बढ़ाने की वकालत की। इसी क्रम में उन्होंने बिहार में पहले जाति सर्वेक्षण और फिर आरक्षण की सीमा 65 फीसदी करने के फैसले को विधानसभा की मंजूरी दिलाई। उनके इस फैसले का बिहार भाजपा ने भी समर्थन दिया था। इसके बाद नीतीश सरकार के इस फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। फिर बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जहां सोमवार को शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सीएम नीतीश कुमार की पूरी राजनीति ओबीसी और ईबीसी केंद्रीत रही है। बीते 34 सालों से बिहार में करीब-करीब समाजवादियों की सरकार है। इसमें पहले लालू यादव फिर नीतीश कुमार की सत्ता चल रही है। जाति सर्वेक्षण के बाद इन्होंने ओबीसी-ईबीसी राजनीति को नई धार दी है। अब यह मसला कानूनी पचड़े में फंस गया है। लेकिन, केंद्र सरकार से नीतीश ने ये नई मांग कर उसे धर्म संकट में डाल दिया है। अब यह मुद्दा राजनीतिक बन गया है। विपक्षी राजद इसको लेकर नीतीश कुमार पर हमलावर है। नीतीश की राजनीति के लिए इस फैसले को लागू करवाना बेहद अहम हो जाता है। ऐसे में इसका एक ही रास्ता बचता है। बिहार सरकार के इस फैसले को केंद्र सरकार संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दे। इसको लेकर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने केंद्र सरकार से औपचारिक तौर पर अनुरोध भी किया है। बीते दिनों नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में इसको लेकर पीएम मोदी अनुरोध करने की बात भी कही।
नीतीश कुमार की इस मांग से केंद्र सरकार धर्म संकट में आ गई है। राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन भाजपा के धर्म की राजनीति के काट में जाति की राजनीति पर जोर दे रहा है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी भरी संसद में आबादी के हिसाब भागीदारी का मसला उठा रहे हैं। उन्होंने सोमवार को ही बजट पर चर्चा के दौरान जाति आधारित जनगणना का मसला उठाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का बजट तैयार करने वाले 20 शीर्ष अफसरों में केवल एक ओबीसी और एक अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। उनका यह बयान खूब वायरल हो रहा है। मोदी सरकार अब सफाई देने के स्थिति में आ गई है। ऐसे में वह अगर नीतीश कुमार की मांग नहीं मानती है तो उसपर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगेगा। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। संविधान की नौवीं अनुसूची में किसी मसले को डाल देने से उसकी अदालती समीक्षा नहीं की जा सकती। अभी तक इस अनुसूची में 284 मसले डाले जा चुके हैं। इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि हमारे पास इस वक्त बहुत सीमित विकल्प है। केंद्र सरकार को हमारी मांग पर विचार करना चाहिए। केंद्र सरकार पर दबाव डालने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम दबाव की राजनीति में भरोसा नहीं करते हैं। चीजों को व्यापक संदर्भ में देखने की जरूरत है। ई़डब्ल्यूएस कोटा लागू होने के बाद देश में आरक्षण के मसले पर नए तरीके बहस हो रही है।