नई दिल्ली । बिहार सहित देश के कई हिस्सों में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) के दौरान सामने आ रही एक बड़ी सच्चाई ने नागरिकता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आमतौर पर पहचान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दस्तावेज, जैसे कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड आदि दरअसल कानूनी रूप से नागरिकता साबित नहीं करते हैं।
यह खुलासा तब हुआ जब राज्य निर्वाचन अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या बरकरार रखने के लिए नागरिकता के वैध प्रमाण जरूरी हैं। इस पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि जब आधार और वोटर आईडी रोजमर्रा के जीवन में जरूरी हैं, तो क्या वे भारतीय नागरिकता के लिए काफी नहीं?
विशेषज्ञों के अनुसार, आधार कार्ड सिर्फ एक पहचान संख्या है, जो देश में रह रहे किसी भी निवासी को जारी हो सकती है। यह भारत सरकार की नागरिकता की गारंटी नहीं देता। इसी तरह पैन कार्ड करदाता के लिए होता है, चाहे वह भारतीय हो या विदेशी। वोटर आईडी पहचान के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन यह भी फर्जीवाड़े की संभावना के कारण नागरिकता का पुख्ता प्रमाण नहीं माना जाता।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर फिर नागरिकता कैसे साबित हो सकती है? इसके लिए पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र (विशेष परिस्थितियों में), नागरिकता प्रमाण पत्र या स्थायी निवास प्रमाण पत्र (डोमिसाइल) जैसे दस्तावेजों को प्राथमिकता दी जाती है। कुछ मामलों में स्कूली प्रमाणपत्र भी मान्य हो सकते हैं, यदि उनमें जन्मस्थान और अभिभावकों की नागरिकता दर्ज हो।
इस मुद्दे पर चुनाव आयोग और सरकार की कड़ी नजर है। अधिकारियों का कहना है कि लोकतंत्र की नींव—वोटर लिस्ट—में केवल वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम होने चाहिए। इसके लिए दस्तावेजों की जांच और प्रक्रिया को सख्त किया जा रहा है।
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