वायनाड/नई दिल्ली/भोपाल। केरल के वायनाड में तेज बारिश की वजह से सोमवार देर रात 4 अलग-अलग जगहों पर लैंडस्लाइड हुई। रात 2 बजे से सुबह 6 बजे के बीच हुए लैंडस्लाइड में 4 गांव बह गए। मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में घर, पुल, सडक़ें और गाडिय़ां भी बह गईं। अब तक 119 लोगों की मौत हो चुकी है। 116 अस्पताल में हैं, जबकि 400 से ज्यादा लोगों के लापता होने की खबर है। रेस्क्यू के लिए एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीम मौके पर मौजूद है। एयरफोर्स के 2 हेलिकॉप्टर भी रेस्क्यू के लिए भेजे गए, लेकिन बारिश के चलते उन्हें कोझिकोड लौटना पड़ा। इधर, केरल सरकार ने इस हादसे के बाद राज्य में दो दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। केरल में हादसे के बाद मप्र सरकार की भी चिंता बढ़ गई हैं। इसकी वजह यह है कि मप्र में कई पुल और बांध आज इस स्थिति में हैं कि वे कभी भी दरक सकते हैं। उम्रदराज हो चुके पुलों से आज भी हजारों वाहन रोज निकल रहे हैं।
मप्र में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के कुल 80 ब्रिजों को मरम्मत की जरूरत है। हादसों की आशंका के मद्देनजर अब इन्हें तत्काल सुधार की श्रेणी में रखा गया है। पीडब्ल्यूडी ने ब्रिज के संबंध में प्रदेश स्तरीय रिपोर्ट सरकार को भेजी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसमें 65 पुल ऐसे हैं जो 68 साल पुराने हैं। इसका निर्माण साल 1956 से 1961 के बीच किया गया था। बीते विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को भेजी गई पीडब्ल्यूडी के ब्रिज जोन की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्वालियर, चंबल और सागर संभाग में खस्ताहाल ब्रिजों की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद जबलपुर, इंदौर और उज्जैन संभाग में ब्रिजों की स्थिति खराब है। वर्ष 2021, अक्टूबर में ग्वालियर और चंबल संभाग में बाढ़ के दौरान सात पुल टूट गए थे। तब जर्जर या सालों पहले बने होने के कारण कमजोर हो चुके पुल का सुधार कार्य भी शुरू किया गया था।
पुलों का परीक्षण में आई हकीकत………………..
पीडब्ल्यूडी ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए सेफ्टी ऑडिट किया है। पहले चरण में कुल 92 ब्रिजों का फ्रांस की एआईसी कंपनी ने ऑडिट किया। इसके अलावा 89 ब्रिजों का ऑडिट दिल्ली की फीडबैक कंपनी ने किया। अफसरों ने बताया कि मशीनों और लेजर की अत्याधुनिक तकनीक के जरिए ऑडिट किया गया। सात करोड़ की मोबाइल ब्रिज इंफेक्शन यूनिट के जरिए ब्रिजों में लगा लोहा, कंक्रीट, अंडर वाटर टेस्टिंग, कंटूर समेत अन्य परीक्षण किए गए। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश में पीडब्ल्यूडी का गठन वर्ष 1956 में हुआ था। लेकिन इससे पहले भी अंग्रेजों ने कई ब्रिजों का निर्माण कराया था। इसके अलावा विभाग ने वर्ष 1978 तक कुल 322 रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी), फ्लाईओवर, वृहद पुल का निर्माण कराया। जो कम से कम 45 साल पुराने हो चुके हैं। साल 1956 से 1961 के बीच प्रदेश में पीडब्ल्यूडी ने 65 पुलों का निर्माण कराया था। इस साल तैयार हुई 86 पुलों की तत्काल मरम्मत की सूची में इन ब्रिजों की संख्या 32 है।
पीडब्ल्यूडी के पुराने पुल
वर्ष 1956 से 1961 तक- 65 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1961 से 1966 तक- 89 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1966 से 1969 तक- 43 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1969 से 1974 तक- 61 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1994 से 1975 तक- 15 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1975 से 1976 तक- 34 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1976 से 1977 तक- 15 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1978 से 1985 तक- 91 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1985 से 1986 तक- 20 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1986 से 1987 तक- 28 ब्रिज का निर्माण
वर्ष 1987 से 1988 तक- 30 ब्रिज का निर्माण
जर्जर स्थिति में आधा सैकड़ा बांध…………..
प्रदेश में करीब आधा सैकड़ा बांध ऐसे हैं जो पुराने होने के कारण जर्जर स्थिति में आ गए हैं। जल संसाधन विभाग ने 27 ऐसे बांघों को चिन्हित किया है, जिनकी मरम्मत जरूरी है। जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार श्योपुर जिले में वर्ष 1908 में निर्मित वीरपुर, वर्ष 1910 में सिवनी जिले में निर्मित रुमल और 1913 में धार जिले में बने माही सहित प्रदेश के 27 बांधों की सरकार मरम्मत कराएगी। इन बांधों की दीवार में कहीं-कहीं दरार आ चुकी हैं या कहीं-कहीं मिट्टी धंस रही है। जल संसाधन विभाग के अफसरों का कहना है कि प्रदेश में ज्यादातर बांध 35 साल पुराने हैं। जबकि, तीन बांधों (वीरपुर, रुमल और माही) को बने हुए सौ साल से अधिक हो चुके हैं। बांधों की मरम्मत की जरूरत को देखते हुए बारिश से पहले मरम्मत सहित अन्य विकास के काम की कार्ययोजना बनाई गई है। जिन बांधों की मरम्मत होनी है उनमें इंदौर का देपालपुर और चोरल, सागर का चंदिया नाला, मंसूरवारी और राजघाट, खंडवा का भगवंत सागर, मंदसौर का गांधी सागर, काकासाहेब गाडगिल सागर और रेताम, भोपाल का कलियासोत, केरवा और हथाईखेड़ा, बैतूल जिले का चंदोरा, नर्मदापुरम का डोकरीखेड़ा, सीधी का कंचन टैंक, शिवपुरीकाकुडा, टीकमगढ़ का वीर सागर और नंदनवाड़ा, मंडलाका मटियारी, आगर मालवा का पोपलिया कुमार, धार का सकल्दा, रतलाम का रुपनियाखाल,शाजापुर का तिल्लार और कटनीका बोहरीबंद बांध शामिल हैं।
गाद, रेत और बजरी के घर्षण से कमजोर हो रहे बांध…………
देश में बांध पुराने और कमजोर होते जा रहे हैं, इसलिए खतरा भी बढ़ता जा रहा है। देशभर में 5,745 बांध हैं, जिनमें से 293 बांध 100 साल से ज्यादा पुराने हैं। 25 फीसदी बांधों की उम्र 50 से 100 साल के बीच है। 2025 तक हालात भयावह हो चुके होंगे, क्योंकि उस समय तक 301 बांध 75 साल पुराने हो चुके होंगे। इकोनॉमिक एंड पॉलिटकली वीकली (ईपीडब्ल्यू) के एक लेख के मुताबिक, 2025 तक 496 बड़े बांध 50 साल से अधिक पुराने हो चुके होंगे। भारत में बांध महज 100 साल की उम्र के हिसाब से ही डिजाइन किए गए हैं। सभी विशाल भंडारण क्षमता वाले निर्माण समय के साथ कमजोर पड़ते जाते हैं। लहरों, गाद, रेत और बजरी के घर्षण की वजह से निर्माण में इस्तेमाल की गई कांक्रीट और स्टील जैसी सामग्री का क्षरण होने लगता है, जिसके चलते बांध कमजोर हो जाते हैं।