– चंदन मिश्र
गुरुजी, दिशाेम गुरु यही संबोधन शिबू सोरेन को आम जनता, उनके सहकर्मी और उनके अनुयाई करते थे। शिबू सोरेन की पहचान भारतीय राजनीति में न सिर्फ, एक विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में ही नहीं थी। वह एक सच्चे समाज सुधारक, आदिवासी समाज के पथ प्रदर्शक और शोषकों, महाजनों के खिलाफ संघर्ष के पर्याय थे। शिबू सोरेन एक युग पुरुष थे, जिनका आज अवसान हो गया। गुरुजी आनेवाले कई दशकों तक झारखंड के लोगों के दिल में राज करेंगे।
दिशाेम गुरु आदिवासियों के महानायक थे। गरीबों और पिछड़ों के मसीहा थे। आदिवासी समाज कैसे आगे बढ़े, कैसे उनका विकास हो, गुरुजी सदैव इसी बात को लेकर संघर्ष करते रहे।
राजनीति में बहुत कम ऐसे शख्सियत होते हैं, जिन्हें दलीय सीमा से नहीं बांधा जा सकता है। ऐसे ही शख्सियतों में शिबू सोरेन थे। कांग्रेस के साथ उनका गहरा राजनीतिक संबंध था, लेकिन विरोधी भाजपा में भी उनका उतना ही सम्मान था। राज्य बनने के बाद गुरुजी जब संसद और विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, तब भाजपा ने उन्हें संसद के ऊपरी सदन में उन्हें भेजने में पूरी मदद की। राज्यसभा की दो सीटें झारखंड से खाली थीं और चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। तब झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने झारखंड आंदोलनकारी के रूप में उन्हें सम्मान करते हुए राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव रखा।
गुरुजी झारखंड आंदोलन और महाजनी प्रथा के संघर्षशील योद्धा के रूप में सामने आए। रामगढ़ के
नेमरा गांव में जन्मे शिव चरण मांझी जब महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष करने निकले तो धनबाद के चास (पहले माराफारी कहलाता था ) में मिट्टी काटा। गुरुजी ने इस पत्रकार से बातचीत में कहा था, शुरुआत में इसी माराफारी में मिट्टी काटा था। कंधे में मिट्टी ढोया था। यहां से टुंडी के निकट पोखरिया में एक आश्रम खोला था। वहां आदिवासी बच्चों को रात्रि पाठशाला में पढ़ाया करते थे। आदिवासी समाज के बीच नशाखोरी और अशिक्षा को खत्म करने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर काम किया। महतो और मांझी समुदाय ने मिलकर झारखंड में अलग राज्य की लड़ाई को नया स्वरूप दिया। अलग राज्य की लड़ाई ने कई उतार चढ़ाव देखे। झामुमो की इस राजनीतिज्ञ यात्रा में गुरुजी के कई साथी बिछुड़ गए, कई नेता साथ जुड़े, लेकिन उनका कारवां बढ़ता गया। गुरुजी का अलग राज का संघर्ष चलता रहा। अलग राज्य के एक मुकाम के तौर पर झारखंड स्वायत्तशासी परिषद (जैक ) का गठन हुआ। शिबू सोरेन जैक के अध्यक्ष बनाए गए। लेकिन अलग राज्य की लड़ाई अधूरी ही रही। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी तब झारखंड राज्य का सपना पूरा हुआ।
शिबू सोरेन झारखंड के पहले तो नहीं लेकिन तीसरे मुख्यमंत्री बने। वह दस साल के अंदर तीन बार मुख्यमंत्री बने। केंद्र में कोयला मंत्री बने। आठ बार लोकसभा के सदस्य और दो बार राज्यसभा के सदस्य बने।
गुरुजी झारखंड के नागरिकों के बीच एक महानायक की तरह उभरे। अलग राज्य के संघर्ष के साथ साथ झारखंड के शोषित, दलित, पीड़ित और उपेक्षित आदिवासी तथा वंचित समाज के मसीहा के रूप में सामने आए। शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में अपने द्वितीय पुत्र , झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्थापित कर एक बड़ी जिम्मेवारी सौंपी है। अब हेमंत सोरेन पर गुरुत्तर जिम्मेवारी है कि वह अपने प्रतापी पिता के इस आशीष को कितनी ऊंचाई तक लेकर जाएंगे। झामुमो और झारखंड की विरासत को संभालना बड़ी चुनौती होगी शिबू सोरेन आज भले ही शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हैं, लेकिन झारखंड के कण कण में, हर व्यक्ति के हृदय में सदैव विराजमान रहेंगे। दिशोम गुरु को अंतिम जोहार !
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