पूर्वी सिंहभूम । झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा-हाटा मुख्य मार्ग पर स्थित मां जगत जननी रंकिणी मां का मंदिर श्रद्धा, शक्ति और दिव्यता का अद्भुत संगम है। यह पावन धाम जादूगोड़ा से लगभग तीन किलोमीटर दूर कापरघाट नामक रमणीय स्थान पर स्थित है। घने जंगलों, हरियाली और पर्वतों के बीच स्थित यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मा को शांति देने वाला एक दिव्य तीर्थ स्थल है, जहां भक्तों की सच्ची आस्था और मां की कृपा चमत्कारी रूप में प्रत्यक्ष होती है।
मां रंकिणी की प्रतिमा, जिसकी आंखें चांदी की हैं, अत्यंत प्रभावशाली और मोहक है। यहां आकर भक्त मां के चरणों में अपने दुःख-दर्द अर्पित करते हैं और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माँ से कुछ मांगता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। मंदिर के परिसर में हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु जुटते हैं, परंतु मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा होती है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त माँ के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं।
मां रंकिणी को देवी दुर्गा के स्वरूप के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में कोई पारंपरिक मूर्ति नहीं है, बल्कि एक काले पत्थर को ही मां का रूप मानकर पूजित किया जाता है। भक्त यहां
सुपारी, नारियल और अक्षत को लाल कपड़े में बांधकर माँ के समक्ष टाँगते हैं। यह मान्यता है कि जब मां उनकी मनोकामना पूरी कर देती हैं, तब वह कपड़ा स्वयं खुल जाता है। यह मां की कृपा और चमत्कार का जीवंत प्रमाण माना जाता है।
यह स्थान केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, अपितु प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यंत रमणीय है। मंदिर के ठीक सामने स्थित पर्वत की चोटी पर बजरंगबली की प्रतिमा स्थापित है, जहां से नीचे का दृश्य अत्यंत सुंदर और मनोहारी प्रतीत होता है। यहां की शांति, हवा की ताजगी और प्राकृतिक सौंदर्य आत्मा को एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है।
मंदिर की स्थापना से जुड़ी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, धालभूमगढ़ के राजा जगन्नाथ धाल ने इस मंदिर की स्थापना की थी। एक अन्य कथा के अनुसार, एक स्थानीय आदिवासी को एक दिन जंगल में एक छोटी कन्या के रूप में माँ का साक्षात रूप दिखाई दिया, जो आभूषणों से सुसज्जित थी और फिर अचानक अदृश्य हो गई। उसी रात उसे स्वप्न में माँ ने दर्शन दिए और मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया। इसके बाद उस स्थान पर मां रंकिणी की पूजा आरंभ हुई।
वर्तमान मंदिर का निर्माण वर्ष 1950 के आसपास हुआ और मंदिर का संचालन करने हेतु वर्ष 1954 में एक ट्रस्ट का गठन किया गया। आज भी इस मंदिर की पूजा व्यवस्था सहड़ा गांव के भूमिज जाति के पुजारियों द्वारा की जाती है। वर्तमान में मंदिर के प्रधान पुजारी अनिल सिंह हैं, जो पूरी निष्ठा से मां की सेवा में लगे हैं।
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