उच्च शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की तैयारी
नई दिल्ली । भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में जल्द ही बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। केंद्र की मोदी सरकार एक नए ड्राफ्ट बिल के जरिए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी), ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) को खत्म करने की योजना में है। इनकी जगह एक नई संस्था, हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (एचईसीआई) बनाई जाएगी। जो कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 पर आधारित होगी।
मोदी सरकार के इस कदम को कुछ लोग उच्च शिक्षा में एकरूपता और संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने की दिशा में सकारात्मक मान रहे हैं। वहीं, कुछ जानकार जिसमें हाल ही की एक संसदीय समिति भी शामिल है, चेतावनी दे रही है कि इससे केंद्र सरकार के पास बहुत अधिक शक्ति आ सकती है। जिससे राज्यों की स्वायत्तता कम हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के कॉलेज बंद होने का खतरा बढ़ सकता है।
दरअसल एचईसीआई एक ऐसी संस्था होगी जो उच्च शिक्षा के लिए एक छतरी संगठन के रूप में काम करेगी। यह चार मुख्य हिस्सों में काम करेगी। ये चारों हिस्से मिलकर पाठ्यक्रमों के मानक तय करने से लेकर डिग्री देने की अनुमति तक सब कुछ संभालने वाले है। एनईपी 2020 के लाइट बट टाइट मॉडल के तहत यह व्यवस्था पहले की खंडित व्यवस्था को बदलने का लक्ष्य रखती है।
क्या है मॉडलः नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी काउंसिल (एनएचईआरसी) में शिक्षा के मानक तय करेगी। नेशनल एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएसी) संस्थानों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करेगी। हायर एजुकेशन ग्रांट काउंसिल (एचईजीसी) फंडिंग का प्रबंधन करेगी। वहीं जनरल एजुकेशन काउंसिल (जीईसी) पाठ्यक्रम और योग्यता ढांचा तैयार करेगी। प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) विधेयक को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं। हालांकि इस भारत में उच्च शिक्षा प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए एक बड़े बदलाव के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, आलोचकों का तर्क है कि यह विधेयक नौकरशाही की एक अस्पष्टता को दूसरे रूप में बदल सकता है। शक्ति को केंद्र में केंद्रित करना और राज्यों की आवाज़ों को हाशिए पर डालना।