राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
झारखंड में विधानसभा का चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आते जा रहा है, सूबे की सियासत लगातार करवट ले रही है। नेताओं का मिजाज बदलते ही सियासी समीकरण भी तेजी बदल रहा है। अभी झामुमो के अंदर सियासी उफान आए हुए है। कागज पर झामुमो की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन भले ही अभी बहुत मजबूत दिखाई दे रहा है, किंतु झामुमो के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने अपनी पार्टी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंककर, न सिर्फ झारखंड के सियासी समीकरण को उल्टा-पुल्टा कर दिया है बल्कि झामुमो को भी सांसत में डाल दिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने पिछले सप्ताह अचानक दिल्ली वाया कोलकाता जाकर सूबे में सियासी भूचाल खड़ा कर दिया। सोशल मीडिया में अपने मन की व्यथा जग जाहिर कर यह साफ कर दिया कि अब उनकी सियासी राह झामुमो से बिल्कुल जुदा होगी। चंपाई सोरेन ने सोशल मीडिया में तीन बातें कही हैं। पहला वह राजनीति से सन्यास ले सकते हैं या कोई नई पार्टी या मोर्चा बनाकर राजनीति करेंगे या किसी नए राजनीतिक साथी के साथ आगे की सियासी राह तय करेंगे। दिल्ली से लौटकर चंपाई सोरेन ने यह तो साफ कर दिया है कि वह फिलहाल राजनीति से सन्यास नहीं लेंगे। उसके बाद उनके सामने दो विकल्प है। पहले विकल्प के अनुसार चंपाई सोरेन अपनी नई पार्टी या मोर्चा बनाकर आगे बढ़ेंगे। लेकिन उन्होंने किसी नए साथी के मिलने के बाद उसके साथ आगे बढ़ने की संभावना से भी इनकार नहीं कर रहे हैं।
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कोल्हान टाइगर का कोल्हान में दबदबा
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चंपाई सोरेन को उनके समर्थक प्यार से कोल्हान टाइगर भी बुलाते हैं। कोल्हान के सरायकेला विधानसभा से चम्पाई सोरेन लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। वह झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है। उनका राजनीतिक प्रभाव कोल्हान के तीनों जिलों पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां के लगभग सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों पर समान रूप से पड़ता है। विधानसभा के 2019 के चुनाव में 14 में 11 सीटें झामुमो के खाते में आई थी। दो सीट कांग्रेस और एक निर्दलीय के खाते में गई थी। भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। लिहाजा भाजपा इस बार चंपाई सोरेन के कंधे के सहारे कोल्हान में झामुमो को झटका देने की तैयारी में जुट चुकी है।
चम्पाई सोरेन ने क्षेत्र में अपनी नई पार्टी के लिए अभियान भी शुरू कर चुके हैं। वह पिछले दो दिनों के अंदर तीन जिलों के कई इलाकों का दौरा भी कर लिया है। उनकी मानें तो एक सप्ताह के अंदर चंपाई सोरेन अपनी सियासी रणनीति का खुलासा कर देंगे। कोल्हान के कई झामुमो विधायक चम्पाई सोरेन के प्रभाव में हैं। भले ही अभी नेतृत्व के दबाव में ये विधायक खुल नहीं रहे हैं, लेकिन संभव है कि चुनाव आने तक कई विधायक अपना पत्ता खोलें। चंपाई सोरेन का कोल्हान के कई विधानसभा क्षेत्रों में जबरदस्त प्रभाव है। झामुमो के लिए चम्पाई सोरेन आनेवाले चुनाव में बड़ी चुनौती पेश करने वाले हैं।
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ना मंत्री पद छोड़ा, न पार्टी से अभी तक नाता तोड़ा
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चम्पाई सोरेन ने झामुमो से अलग सियासी राह चुन तो ली है, लेकिन उन्होंने अभी तक न तो मंत्री पद छोड़ा और न ही झामुमो से नाता तोड़ा है। जबकि अपने सोशल मीडिया के स्टेटस से मंत्री पद और झामुमो के तीर धनुष के चिन्ह को हटा चुके हैं। उधर झामुमो नेतृत्व ने भी चंपाई सोरेन को पार्टी के खिलाफ इस बगावत के बावजूद हटाया नहीं है और न ही मंत्री पद से बर्खास्त ही किया है। सच तो यह भी है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित झामुमो के किसी नेता ने चंपाई सोरेन के खिलाफ एक भी ऐसा बयान जारी नहीं किया है, जो उन्हें चोट पहुंचाए। शायद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त नहीं करना चाहते हैं और न ही पार्टी से निकालना चाहते हैं। चम्पाई सोरेन खुद से मंत्री पद और पार्टी छोड़ें, शायद यही चाहते होंगे। वहीं चम्पाई सोरेन भी मंत्री पद और पार्टी नहीं छोड़कर, बर्खास्त किए जाने की कार्रवाई की प्रतीक्षा में हों। इससे उन्हें क्षेत्र में सहानभूति मिले और मुख्यमंत्री यही नहीं होने देना चाहते होंगे।
बहरहाल चंपाई सोरेन ने ऐसा राजनीतिक कदम उठाया ही, जिससे भाजपा तो अंदर ही अंदर खुश होगी, लेकिन झामुमो के लिए यह परेशानी का सबब होगा। झामुमो के पास कोल्हान में चंपाई सोरेन की कद काठी वाला कोई दूसरा नेता भी नहीं है, जिसे प्रोजेक्ट कर झामुमो इस कमी की भरपाई कर सके। झारखंड की सियासत क्या रंग लाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
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