नई दिल्ली । ‘द्रोणपुष्पी’ अथवा गुमा का पौधा औषधीय गुणों का खजाना है1बेहद साधारण दिखने वाला यह पौधा आयुर्वेद में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके पत्ते, फूल, तना और जड़ हर हिस्सा किसी न किसी रोग के इलाज में काम आता है। अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार इसका वैज्ञानिक नाम ल्यूकास असपेरा है। इसमें ट्राइटरपेनोइड्स जैसे ओलेनोलीक एसिड, यर्सोलिक एसिड और बीटा-सिटोस्टेरोल पाए जाते हैं। ऊपर के हिस्सों में निकोटिन, स्टेरोल्स और कई तरह के अल्कलॉइड्स होते हैं। इसमें शर्करा जैसे गैलैक्टोज और ग्लूकोसाइड भी पाए जाते हैं। इसके पत्तों में खुशबूदार और तैलीय पदार्थ होते हैं, जिनमें यू-फारनीसीन, एक्स-थुजीन और मेंथोल प्रमुख हैं। फूलों में ऐमिल प्रोपियोनेट और आइसोएमिल प्रोपियोनेट पाए जाते हैं जबकि बीजों में पाल्मिटिक, स्टीयरिक, ओलेइक और लिनोलेइक एसिड जैसे फैटी एसिड मिलते हैं।
बीजों के तेल में बीटा-सिटोस्टेरोल और सेरिल अल्कोहल भी होते हैं। इसके तने और जड़ों में ल्यूकोलेक्टोन नामक यौगिक होता है जो इसके औषधीय गुणों को और बढ़ाता है। द्रोणपुष्पी में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जिससे यह कई तरह की बीमारियों में फायदेमंद मानी जाती है। इसका काढ़ा बुखार, मलेरिया या टाइफाइड में बेहद लाभकारी है और पत्तों का रस लगाने से शरीर को ठंडक और जलन में राहत मिलती है। पेट की समस्याओं जैसे अपच, गैस, पेट फूलना या दस्त में इसकी सब्जी या काढ़ा पाचन को मजबूत करता है और भूख बढ़ाता है।
गठिया और जोड़ों के दर्द में इसके काढ़े या पत्तों के लेप से सूजन और दर्द में आराम मिलता है। त्वचा रोग जैसे दाद, खुजली या घावों पर इसका रस लगाने से संक्रमण कम होता है। सांस की समस्याओं जैसे खांसी, सर्दी या दमा में इसका काढ़ा अदरक और शहद के साथ पीना फायदेमंद होता है। इसके फूलों को काले धतूरे के फूलों के साथ धूम्रपान करने से भी श्वास की तकलीफ में लाभ होता है। पीलिया और लिवर रोगों में इसकी जड़ का चूर्ण पिप्पली के साथ लेना उपयोगी है।
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