देश-दुनिया के इतिहास में हर तारीख का अपना महत्व है। इस लिहाज से 24 जून की तारीख भारत की स्वाभिमानी वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन के लिए खास है। यह तारीख उनके बलिदान की याद दिलाती है। महाकौशल में आज भी उनके बारे में ना जाने किंवंदती हैं। उनमें खास है- ‘शेर का शिकार किए बिना जो न पिए पानी, नाम था उसका दुर्गावती रानी’। यह कथन कितना सही है, यह इतिहासकार जानें पर इसका मतलब है कि रानी दुर्गावती इतनी साहसी थीं कि जब तक वह शेर का शिकार नहीं कर लेती थीं, तब तक वह पानी भी नहीं पीती थीं। यह उनके साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।
उत्तर प्रदेश के बांदा में 05 अक्टूबर, 1524 को चंदेल वंश के शासक कीरत राय के घर पर जन्मीं दुर्गावती को बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी और घुड़सवारी का शौक था। वह बचपन में पिता कीरत के साथ जंगलों में शिकार करने जाया करती थीं। 1542 में 18 साल की उम्र में उनकी शादी गोंडवाना के कुंवर साहब दलपत शाह से कर दी गई। कुछ साल बाद रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। बेटा पांच साल का हुआ ही था कि दलपत शाह का निधन हो गया। रानी ने अपने बेटे को गद्दी पर बैठाया और गोंडवाना राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
उन्होंने अपने राज्य की राजधानी को चौरागढ़ से सिंगौरगढ़ स्थानांतरित किया। सेना में बड़े बदलाव किए और एक सुसज्जित सेना तैयार की। कई मंदिरों, धर्मशालाओं और तालाबों का निर्माण कराया। 1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया, लेकिन रानी दुर्गावती के साहस के सामने वह बुरी तरह से पराजित हुआ। 1562 में अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया और रीवा पर आसफ खान का कब्जा हो गया। मालवा और रीवा दोनों की ही सीमाएं गोंडवाना को छूती थीं, इसलिए मुगलों ने गोंडवाना को भी अपने साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की। आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला किया, लेकिन इस हमले में रानी की जीत हुई। 1564 में आसफ खान ने फिर हमला बोला। रानी अपने हाथी पर सवार होकर युद्ध के लिए निकलीं। उनका बेटा वीर नारायण भी उनके साथ था।
युद्ध में रानी को शरीर में कई तीर लगे और वो गंभीर रूप से घायल हो गईं। उन्हें लगने लगा कि अब जिंदा रहना मुश्किल है। तब उन्होंने अपने एक सैनिक से कहा कि वह उन्हें मार दे, लेकिन सैनिक ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब रानी ने 24 जून,1564 को खुद ही अपनी तलवार सीने में मार ली और शहीद हो गईं। 24 जून यानी उनके शहादत के दिन को बलिदान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
जबलपुर में बरेला के निकट जबलपुर-मंडला मार्ग पर उनका स्मारक (समाधि) नरिया नाला में ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां वह बलिदान हुई थीं। उनके सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया था। यह इतिहास में दर्ज है कि रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। गोंडवाना और महाकौशल के लोग आज भी वीरांगना दुर्गावती के शौर्य, साहस और आत्मसम्मान की कहानियां अपने बच्चों को सुनाकर प्रेरित करते हैं। महारानी दुर्गावती ने 16 वर्ष के शासनकाल में 51 युद्ध लड़े और 50 में विजयी हुईं। मुगल बादशाह अकबर की सेना ने उनके राज्य पर हमला किया, तो उन्होंने वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, जब उन्हें लगा कि हार निश्चित है, तो उन्होंने अपनी जान लेना उचित समझा और अपनी कटार से खुद को मार डाला। रानी दुर्गावती का बलिदान भारतीय इतिहास में वीरता और बलिदान का प्रतीक है।