नई दिल्ली । भारत में कई राज्यों में डोमिसाइल नीति की वास्तविकता उजागर हो रही है। इस नीति के अंतर्गत राज्य सरकारें कुछ नौकरियों में संबंधित राज्यों के मूल निवासियों को प्राथमिकता दे रही हैं। डोमिसाइल नीति स्थानीय निवासियों को कुछ विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करती है, जो केवल उस राज्य के निवासियों के लिए होती हैं। इसका उद्देश्य स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करना है। मध्यप्रदेश सरकार ने 2020 में घोषणा की थी कि सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले स्थानीय निवासियों को सरकारी नौकरियों के लिए योग्य माना जाता है, जबकि कर्नाटक में जाति आधारित आरक्षण है। उत्तराखंड में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए हैं। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद भी स्थानीय लोगों के लिए विशेष प्रावधान है। भारत में डोमिसाइल नीति को लेकर चर्चा जारी है, जिसमें सरकारी नौकरियों और सुविधाओं में स्थानीय निवासियों को मिलने वाली प्राथमिकता पर विचार किया जा रहा है। उदाहरण के लिए इन मामलों पर गौर कर सकते हैं। महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले स्थानीय निवासी ही सरकारी नौकरी के लिए योग्य माने जाते हैं, यहां स्थानीय निवासी कम से कम 15 साल से रहना वाला व्यक्ति होना चाहिए। हालांकि इसमें कर्नाटक के बेलगाम के रहने वाले लोग अपवाद माने गए हैं, क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मराठी बोलते हैं। वहीं कर्नाटक में सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण है लेकिन यहां 95 से ज्यादा प्रतिशत सरकारी कर्मचारी स्थानीय हैं।
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