दुमका। नीड बेस्ड शिक्षकों के स्थायीकरण की मांग के मुद्दे पर विधायक प्रदीप यादव द्वारा मंगलवार को विधानसभा में उठाये गए प्रश्न की जहां सराहना हो रही है, वहीं सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा दिये गए नकारात्मक उत्तर से राज्य भर के नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर्स में रोष है।
झारखंड असिस्टेंट प्रोफेसर कांट्रैक्टच्युल एसोसियेशन के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ०एस०के०झा ने कहा कि मंगलवार को विधानसभा सत्र के दौरान विधायक प्रदीप यादव द्वारा नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर के हितार्थ बहुत ही सार्थक प्रश्न पटल पर रखा गया। विधायक प्रदीप यादव के सभी नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर आभारी हैं, जिन्होंने सदन के पटल पर हम सबों के समायोजन, नियमितीकरण की वर्षों पुरानी मांग को ज़ोरदार तरीके से रखा। वहीं, दूसरी ओर उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री के जवाब से राज्य के नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति विधिवत रुप से हुई है; स्वीकृत रिक्त पदों के विरुद्ध हुई है; आरक्षण रोस्टर के साथ हुई है; सभी यूजीसी रेगुलेशन के अनुसार अर्हताएं प्राप्त हैं; उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग का संकल्प ही इसका प्रमाण है। नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षक है। आठ वर्षों का अनुभव है तब रेगुलराइजेशन क्यों नहीं किया जा सकता है?
संघ के केंद्रीय सचिव डॉ ब्रह्मानन्द साहू ने कहा कि वर्ष,2019 में वर्तमान सरकार के चुनावी घोषणापत्र में अनुबंध कर्मियों को रेगुलराइज करने का वादा किया गया था, परंतु सदन में समायोजन के संदर्भ में इस प्रकार मुकर जाने से हम-सभी शिक्षक काफी मर्माहत हुए हैं। राज्य में सभी विश्वविद्यालयों व अंगीभूत महाविद्यालयों में 1987 से एडहॉक नियुक्ति, पुनः 2009 से गेस्ट नियुक्ति, पुनः 2017 से घंटी आधारित अनुबंध शिक्षक की नियुक्ति और 2023 से नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति से यहां के युवा की बौद्धिक संपदा को विकलांग बनाने की रणनीति को परिवर्तित कर उन्हें नैसर्गिक न्याय प्रदान करने की जरुरत है। वर्तमान सरकार से हम सभी अस्थाई शिक्षकों की यही मांग है कि पहले नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर का नियमितीकरण कर कल्याणकारी राज्य होने के विश्वास तथा दावे को सुदृढता प्रदान करें।
संघ के केंद्रीय कोषाध्यक्ष डॉ. सुमंत कुमार ने कहा कि नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए जिस प्रकार की वेटेज,उम्र सीमा में छूट और नियुक्ति में प्राथमिकता देने की बात कही गई है, उससे तमाम नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर आहत हैं। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में दो वर्षों की अनुबंध सेवा पर, राजस्थान, मिजोरम आदि जगहों पर पांच वर्षों की सेवा पर अस्थाई शिक्षकों को रेगुलराइज किया गया है। हमारे राज्य में भी वर्ष,1978,1980 तथा 1982 में क्रमशः 18 माह तथा 24 माह के सेवा के बाद ही अस्थाई शिक्षकों का समायोजन किया गया है। अतः सरकार को चाहिए कि नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर के हितार्थ नियमितीकरण को लेकर यथाशीघ्र नीति निर्माण करें।
संघ के केंद्रीय प्रवक्ता प्रो. हरेन्द्र पंडित ने सदन में उच्च शिक्षा मंत्री के उत्तर का हवाला देते हुए कहा कि असिस्टेंट प्रोफेसर की रेगुलर नियुक्ति को लेकर 2416 पदों की अधियाचना जेपीएससी में भेजी गई है तथा नियुक्ति प्रक्रियाधीन है। मंत्री के संज्ञान में हो कि हमारे राज्य में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति वर्ष 2007-08, के बाद 2018 में यानी दस वर्षों के अंतराल पर विज्ञापन प्रकाशित होने का इतिहास है। विडंबना यह कि 2018 की नियुक्ति प्रक्रिया ही अब तक संपन्न नहीं हो पाई है, ऐसे में आने वाले विज्ञापन और नियुक्ति प्रक्रिया पर विचार करना और नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर के नियमितीकरण पर विचार नहीं करना, किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं लगता है। अतः वर्तमान सरकार के विराट हृदय में अनुबंध कर्मियों के लिए थोड़ी बहुत भी सहानुभूति है, तो जेपीएससी को भेजी गई 2416 पदों की अधियाचना में नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर के समायोजन हेतु 700-750 पद सुरक्षित रखना चाहिए और उक्त सुरक्षित रखे गए पदों पर नीड बेस्ड असिस्टेंट प्रोफेसर का नियमितीकरण किया जाना चाहिए।
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री के द्वारा दिए गए उत्तर का विरोध करने वाले शिक्षकों में डाॅ. तेतरु उरांव, डॉ. सोयब अंसारी, डॉ. प्रभाकर कुमार, डॉ. पुष्पा तिवारी, डॉ. अंजना सिंह, डॉ. दीपक कुमार, डॉ. ललिता सुंडी,डॉ. देवेंद्र साहू, डॉ. अजीत हांसदा, डॉ. अजय नाथ शाहदेव, डॉ. स्मिता कुमारी, डॉ. बिंदेश्वरी साहू, डॉ. अवन्तिका, डॉ. अन्नपूर्णा झा, डॉ. वासुदेव प्रजापति, डॉ. कंचन गिरी, डॉ. चंद्रकांत कमल, डॉ. बिलकस पन्ना, डॉ. राफिया बेगम, डॉ. विद्याराज, डॉ. संजू, डॉ. मोनीदीपा दास, डॉ. वाज़दा तबस्सुम, सहित सैकड़ों शिक्षकों ने सरकार से सिर्फ और सिर्फ रेगुलराइजेशन की मांग की है।