चुनाव संपन्न होने के बाद जीत एवं हार का कयास लगाने में जुटे समर्थक, अपने-अपने प्रत्याशियों की जीत के कर रहे दावे
रामगढ़(दुमका) । विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद सभी प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। दुमका जिले के जामा विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 18 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। चुनाव संपन्न होने के बाद बुधवार की शाम से गुरुवार को पूरे दिन भर लोग अपने-अपने हिसाब से जीत एवं हार का अंदाज लगाते रहे। अठारह प्रत्याशियों के मैदान में रहने के बावजूद इस बात पर सभी एकमत दिखे कि यहां सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू एवं झामुमो प्रत्याशी डॉक्टर लुईस मरांडी के बीच ही रहा। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार थोड़ी ज्यादा वोटिंग हुई है। इसकी व्याख्या भी लोग अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं। रामगढ़, गम्हरिया हाट, मोहनपुर मोड़, सारमी, ढोला मोड, अमड़ा पहाड़ी, छोटी रण बहियार, कडबिंधा, महुबना, ठाडीहाट, सिंदुरिया, धरमपुर, मरणा डीह, बंदर जोरा, कांजो, भदवारी, कुशमाहा आदि के चौक-चौराहों एवं चाय पान की दुकानों पर लोग दिन भर चुनावी चर्चा में व्यस्त रहे। झामुमो प्रत्याशी डॉ लुईस मरांडी की विजय का दावा करने वालों के अनुसार मतदान का बढ़ा हुआ प्रतिशत झामुमो की जीत को आश्वस्त करने वाला है। मंईयां सम्मान योजना, बिजली बिल की माफी, 200 यूनिट फ्री बिजली तथा पोषण सखी की सेवा वापसी जैसे राज्य सरकार के कदमों के कारण आम जनता विशेष कर महिलाओं का समर्थन झामुमो को मिला है। जिसके कारण झामुमो की विजय सुनिश्चित है। वहीं भाजपा समर्थकों के अनुसार इस बार झामुमो के आधार माने जाने वाले जनजातीय समाज के वोटरों में विभाजन हुआ है। बड़ी संख्या में जनजातीय समाज का वोट बीजेपी को भी पड़ा है। वहीं भाजपा के आधार वोटरों में सेंधमारी करने में झामुमो को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। लगभग 10त्न जनजातीय मतदाताओं के रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांतों में चले जाने के कारण भी मतदान का प्रतिशत जनजातीय क्षेत्रों में थोड़ा घटा है। स्थानीय राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले तटस्थ विश्लेषकों के अनुसार लड़ाई बेशक डॉक्टर लुईस मरांडी एवं सुरेश मुर्मू के बीच है लेकिन मुकाबले का फैसला तीसरा प्रत्याशी करेगा। लोगों का मानना है कि दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी अपने-अपने समर्थकों का वोट एकजुट रखने में सफल हुए हैं। लेकिन झामुमो के बागी तथा अन्य निर्दलीय एवं छोटे दलों के प्रत्याशी झामुमो का खेल बिगाड़ रहे हैं।बांसुरी चुनाव चिन्ह वाले निर्दलीय प्रत्याशी रामकृष्ण हेम्ब्रम, झारखंड पार्टी की प्रत्याशी बीनु बेरोनिका मुर्मू तथा निर्दलीय प्रत्याशी बिहारी हांसदा झामुमो से ही बागी होकर चुनाव में उतरे हैं। इन्हें मिलने वाला हर एक वोट झामुमो के रास्ते में ही कांटे बिछाएगा। दूसरी तरफ 2014 तथा 2019 के विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से जामा में हार का सामना करने वाले भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू के प्रति इस चुनाव में आम मतदाताओं के बीच सहानुभूति का भाव भी दिखा। झामुमो का गढ़ माने जाने वाले रामगढ़ प्रखंड के पूर्वी क्षेत्र के जनजातीय गांवों में जनजातीय समाज के पढ़े-लिखे तथा सामान्य किसानों- मजदूरों के बीच यह भी चर्चा होती रही कि इस बार उन लोगों ने भाजपा को नहीं बल्कि सुरेश मुर्मू के नाम पर इवीएम में कमल का बटन दबाया है। 20 नवंबर को चुनाव के ठीक बाद शाम में रामगढ़ बाजार में आम लोगों के साथ बैठकर चाय पीते हुए सुरेश मुर्मू ने अपनी जीत का दावा करते हुए कहा कि इस बार भाजपा की विजय के प्रति वे पूरी तरह से आश्वस्त हैं। इस बार का चुनाव सुरेश मुर्मू ने नहीं बल्कि भाजपा के सामान्य कार्यकर्ताओं ने लड़ा है।समाज के हर वर्ग का सहयोग एवं आशीर्वाद भाजपा को मिला है।