अशोक कुमार
बुधवार को झारखंड विधानसभा के अंदर जो भी घटनाएं घटी ,उससे संसदीय लोकतंत्र की मर्यादा और गरिमा धूमिल हुई है। एनडीए विधायकों को रात दस बजे सदन वेल से मार्शल आउट कराना उतना ही गलत कदम था जितना एनडीए विधायकों द्वारा सदन के बेल में धरना देते हुए वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करना था। सदन के अंदर बिना अध्यक्ष की अनुमति के सदस्यों को मोबाइल तक ले जाना मना है इसके बावजूद पक्ष विपक्ष के सदस्य सदन में मोबाइल ले जाते हैं। सदस्य गण अपने मोबाइल से ही धरना की घटना को वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करते रहे। यह घोर अनुशासनहीनता का काम था। ऐसा लगता है कि ऐसी घटनाओं से दुखी व नाराज होकर ही स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो ने सदस्यों को मार्शल आउट कराने का आदेश दिया होगा। वैसे यह तभी होता है जब सदन की कार्यवाही चल रही हो और सदस्य हो हल्लाा हंगामा कर रहे हो और अध्यक्ष की बात को ठेंंगा दिखा रहे हो। इस प्रकरण में यदि अध्यक्ष चाहते तो थाने में प्राथमिकी भी दर्ज करा सकते थे। यदि सदन समाप्त भी हो गया हो और विपक्ष के सदस्य शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे तो यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद बिजली काटना और गेट बंद करना एक नियमित प्रक्रिया है और इसी प्रक्रिया के तहत सदन की बिजली काटी गयी थी जिसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है। भाजपा विधायक जिस मांग को लेकर धरना पर बैठे थे उसे भी अनुचित नहीं कहा जा सकता है। वे सदन के नेता मुख्यमंत्री से उनकी पार्टी द्वारा चुनाव के दौरान दिए गए आश्वासनों को पूुरा नहीं करने पर जबाव मांग रहे थे। वैसे भाजपा सहित कई पार्टियांं चुनाव के समय अपने अपने घोषणापत्रों में जनता से कई लिखित वायदे करती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपने घोषणापत्र में दिए सभी वायदों को पूरा नहीं करती है। मुझे याद है कि पूर्व में कांग्रेस अपने चुनावी घोषणापत्रों में देश से गरीबी हटाओं का वायदा करती रही है लेकिन वर्षों के उनके शासनकाल में गरीबी नहीं हटी। इसी तरह जनसंघ भाजपा का पूर्व नाम अपने घोषणापत्रों में हर खेत को पानी और हाथ को काम देने का वायदा की थी लेकिन जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी और अभी मोदीजी के दस साल के शासन काल में भी हर खेत को पानी और हर हाथ को काम देने का चुनावी वायदा पूरा नही कर सकी। चुनावी वायदा पूरा करने के लिए विपक्ष सत्तारू ढ़ दल को बाध्य नहीं कर सकती है। जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन में खुले आम यह एलान कर दिया कि वह विपक्ष के एक एक आरोपों का जबाव ससमय सदन में देगी तो भाजपा विधायकों को थोड़ी सब्र धारण करनी चाहिए थी । यदि सत्तारूढ़ दल ने जनता के साथ वायदाखिलाफी की है तो इसका मुकाबला एसेंबली के अंदर ही करना अपरिहार्य नहीं है। उन्हेें जनता के बीच जाकर सत्तारूढ़ दल के वायदों का पर्दाफाश करना चाहिए था। मुझे जहां तक याद है बात 1985 की संभवत: है। संयुक्त बिहार के विधानसभा में कर्पूरी ठाकुर विपक्ष के नेता थे। एचइसी के मुद्दे पर बहस समाप्त होने के बाद सरकार के उत्तर से असंतुष्ठ होकर विपक्षी दलों के सदस्य सदन में रातभर धरना पर बैठ गए सुबह तक सदन में जमे रहे लेकिन अध्यक्ष ने उन्हें मार्शल आउट कराने का आदेश नहीं दिया क्यों कि वे शांतिपूर्ण ढंग से धरना दे रहे थे।