अशोक कुमार
महाराष्ट्र व झारखंड में विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में जिस तरह से निष्पक्ष चुनाव को नोट के बल पर प्रभावित करने और पैसों के बल पर मतदाताओं को खरीदने का उदाहरण सामने आया है उससे यह साबित होता है कि हमारा लोकतंत्र खतरे में है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजनीतिक दल पूंजीपतियों से वैध और अवैध तरीके से बड़ी राशि लेकर उसका दुरूपयोग चुनाव में मतदाताओं को येनकेन प्रकारेण खरीदने का काम करती है। पहले यह काम कांग्रेस पार्टी खुले रूप में करती थी अब यह काम भाजपा ओैर अन्य क्षेत्रिए पार्टियों के नेता भी देखादेखी में करने लगे हैं। ताजा उदाहरण महाराष्ट्र और झारखंड में देखने सुनने को मिला है। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को होने जा रहे चुनाव के ठीक एक दिन पहले यह मीडिया में खबर सचित्र आयी कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद ताबड़े पर पैसे बांटने का आरोप लगा। मुंबई एक होटल में विपक्ष के एक विधायक और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं विनोद ताबड़े को होटल के उनके कमरे से करीब दस लाख नकद बरामद किए। इस पर चुनाव आयोग ने ताबड़े और भाजपा के एक विधायक पर केस दर्ज किया हे। उधर महाराष्ट्र में ही नासिक में शिंदे सेना के एक नेता के पास से होटल में उनके कमरे में आयोग की टीम ने छापामाकर कर एक करोड़ से अधिक की राशि जब्त की। अब आइए झारखंड की बात करें । झारखंड में भी 20 नबंबर को दूसरे चरण के चुनाव के अंतिम दिन के एक दिन पहले दुमका जिला के जामा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से झामुमो में आकर उम्मीदवार बनी डॉ लुईस मरांडी पर एक गांव के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि वह रात में वोट के लिए ग्रामीणों के बीच पैसे बांटने आयी थी। ग्रामीणों ने उन्हें घेर कर पूछा कि रात में आप यहां क्या करने आयी हैं। उन्होंने ग्रामीणों को यह समझा दिया कि वह एक शादी में भाग ेलेने आयी हैं। हालांकि इस मामले में कहीं कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। इसी तरह पिछले दिनों दुमका में भाजपा के एक नेता के पास से लगभग चार लाख रुपये पुलिस ने जब्त किया हैे। रांची में एक क्षेत्रीय पार्टी के नेता के घर पर वोट डालने के एवज में ख्ुालेआम छात्रों को पांच पाचं सौ रुपये का नोट बांटे जाने की तस्वीर कैमरे में कैद है। चुनाव में काले धन का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता आया है। छोटे बड़े उद्योगपति अपने फायदे के लिए पार्टी और उम्म्ीदवारों को लाखों में पैसे देकर उपकृत करने का प्रयास करते हैं और जब उनकी पार्टी की सरकारें बनती हैं तो वे अपने दिए चंदे को सूद के साथ वसूलते हैं। झारखंड के आदिवासी गांवों में भी विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों द्वारा पैसे बांटने , हडिय़ा पिलाकर , खस्सी कटवा कर और फुटबॉल मैच खेलवाकर वोट खरीदने का प्रयास करते आ रहे हैं। इस अनैतिक काम से कोई बचा है तो वे हैं वामपंथी पार्टियां ,सीपीआई एमएल माले, सीपीएम, सीपीआई। इनके नेता और चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार आम लोगों से चंदा लेकर चुनाव बहुत कम खर्च में लड़ते हैं। मैं इसका जश्मदीद गवाह हूं। नब्बे के दशक में चतरा से माले के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कृष्ण मुरारी सिंह को गया के एक उद्योगपति ने डेढ लाख रुपया का एक थैला चुनाव में सहयोग के लिए भेजा था लेकिन उन्होंने उक्त राशि का सधन्यवाद लौटा दिया था। इसी तहर माले नेता स्वर्गीय महेंद्र सिंह को एक पूंजपति ने बगोदर से चुनाव लडऩे के दौरान कैश का सूटकेश भेजा था उन्होंने वह राशि उक्त पूंजीपित को लौटा दिया था और यह चेतावनी भी दी थी कि भविष्य में उन्हें भ्रष्ट करने की कोशिश नहीं करें। सचमुच, उपरोक्त उदाहरण लोकतंत्र के लिए भारी खतरे का संकेत है। इतना ही नहीं आजकल राजनीतिक दल चुनावों में मीडियाकर्मियों को भी अपने समर्थन में न्यूज छापने या चैनल पर दिखाने के लिए नकद राशि बांटने लगे हैंंं। लोकतंत्र के इस चौथे खंभे को भी पथभ्रष्ट करने में लग गए हैं।