राज्य और राजनीति
चंदन मिश्र
झारखंड भाजपा को अब अपने नए खेवनहार की तलाश है। साथ ही राज्य के लाखों कार्यकर्ताओं को अपने नए अध्यक्ष का इंतजार है। यह इंतजार कब पूरा होगा, इसका जवाब दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय नेताओं के पास है। लेकिन झारखंड में नए अध्यक्ष को लेकर कयासबाजी का दौर जारी है। इधर कयासबाजी चल रही है, उधर लॉबिंग भी जारी है। सभी नेता अपने अपने ढंग से जोर तोड़ में लगे हैं। अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर लोगों के अंदर उत्सुकता चरम पर है।
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भाजपा विधायक दल के नेता बन चुके हैं। लिहाजा उन्हें प्रदेश अध्यक्ष त्यागना है। ‘ एक व्यक्ति एक पद ‘ के पार्टी के सिद्धांत के तहत भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष चुनना होगा। इसकी कवायद बहुत पहले शुरू हो चुकी है। भाजपा के अंदर झारखंड में सांगठनिक चुनावी प्रक्रिया संगठन पर्व के नाम से चल रही है। मंडल अध्यक्षों का चुनाव हो चुका है, घोषणा भी बहुत जल्द हो जाएगी। फिर जिला अध्यक्षों का चुनाव होगा। हालांकि कई जिलों में अध्यक्ष बदलने की गुंजाइश बहुत कम है। अधिकतर जिलों में अध्यक्ष नहीं बदले जाने की बात कही जा रही है।
लेकिन अब प्रदेश के नये अध्यक्ष के नाम की घोषणा की प्रतीक्षा है यानी औपचारिक चुनाव हो जाएगी। इसके पहले इस महीने के अंदर केंद्रीय अध्यक्ष के नाम की घोषणा होनी है।
झारखंड भाजपा के नए प्रदेश के चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का विशेष ध्यान रखा जाएगा। विधायक दल का नेता आदिवासी होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष गैर आदिवासी समुदाय से होगा, यह बिल्कुल तय है। भाजपा अपने सोशल इंजीनियरिंग के तय फार्मूले के तहत ओबीसी, एससी या अंतिम विकल्प के रूप में सवर्ण को नया अध्यक्ष बनाना चाहेगी।
झारखंड में भाजपा के लिए कुर्मी समुदाय सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है और भाजपा इस फ्रंट पर अब तक आजसू पार्टी पर ही निर्भर रही है। लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद कुर्मी समुदाय के बीच भाजपा का अपना जन आधार भी बिखर गया। जयराम महतो ने भाजपा-आजसू के कुर्मी वोट बैंक पर जबरदस्त सेंधमारी कर भाजपा और आजसू पार्टी को चुनाव में बुरी तरह परास्त किया है। विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू पार्टी को झामुमो और कांग्रेस से ज्यादा जयराम महतो की पार्टी ने नुकसान पहुंचाया है। भाजपा अपने प्रदेश संगठन का नया ताना-बाना कुर्मी समुदाय को ध्यान में रखकर ही रच सकती है। कुर्मी नेतृत्व के नाम पर भाजपा के पास कोई चेहरा और चर्चित नाम नहीं रहा है। भाजपा को एक अदद कुर्मी नेता सामने लाना होगा।
भाजपा इस फ्रंट पर मजबूती लाने के लिए कुछ नया सोच सकती है। वैसे बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुनकर भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संताल आदिवासी हैं। उसी तरह भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी भी संताल समुदाय के स्थापित आदिवासी और अनुभवी नेता हैं।
भाजपा के नए अध्यक्ष पद पर ऐसे शख्स को बिठाने की कोशिश करेगी, जो अपने प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौती दे सके। भाजपा को ओबीसी या अनुसूचित जाति के किसी नौजवान चेहरे की तलाश है जो संगठन को नई ऊर्जा प्रदान कर सके। वैसे भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले में अगड़ी जाति भी आती है, जो बहुत बड़े वोट बैंक को कवर करती है। लेकिन अगड़ी जाति को भाजपा अपना सुरक्षित वोट बैंक मानकर चलती है, इसलिए इस जाति समुदाय को लेकर भाजपा ज्यादा सशंकित नहीं रहती है। फिलहाल कुर्मी या ओबीसी वोट बैंक को सुरक्षित और मजबूत करना, भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
भाजपा के नए प्रदेश को संगठन के साथ साथ जाति समुदाय को भी पार्टी के पक्ष में संगठित और गोलबंद करना होगा। अब नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जिन नामों की चर्चा चल रही है, उन पर ज्यादा भरोसा करना उचित नहीं होगा, ऐसा पार्टी के पुराने और वरिष्ठ कार्यकर्ता मानते हैं। इनमें कुछ नाम महीनों से मीडिया में चल रहे हैं। कुछ पुराने और कुछ बीच के कालखंड के नेताओं के नाम हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि भाजपा की वर्तमान टीम में डैशिंग नेतृत्व क्षमता किसी नेता के पास नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वर्तमान प्रदेश की टीम में अधिकतर नेता गणेश परिक्रमा वाले हैं। उनका खुद का व्यक्तित्व ऐसा नहीं है कि पार्टी के हजारों कार्यकर्ता और लाखों समर्थकों को अपने नेतृत्व क्षमता की तर्ज पर प्रभावित कर सकें। ऐसे कई नेता सिर्फ अपना व्यक्तिगत प्रभाव बढ़ाने और केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे राजनीति करने पर विश्वास करते हैं। ऐसे नेताओं से झारखंड भाजपा की नैया पार नहीं लगेगी। कार्यकर्ताओं के बीच में से ही किसी दमदार चेहरे को अध्यक्ष पद पर बिठाना होगा, तभी झारखंड भाजपा की नैया पार लगेगी। झारखंड भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं को इस बात का बेसब्री से इंतजार है कि उनकी पार्टी का नया खेवनहार कौन होगा ? उसके नाम और व्यक्तित्व पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। वैसे भाजपा अध्यक्ष पद के लिए राज्यसभा सांसद आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, सांसद मनीष जायसवाल के नाम आगे है। इनके अलावा पूर्व अध्यक्ष रविंद्र राय और रघुवर दास के नाम भी चर्चा में है। अध्यक्ष के रूप में अब किसके नाम की लॉटरी लगेगी, इसका जल्द खुलासा होगा।
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