नई दिल्ली । औषधीय जडी-बूटी सेज का वैज्ञानिक नाम साल्विया ऑफिसिनैलिस है और यह लैमिएसी परिवार से जुड़ा है, जिसमें पुदीना, तुलसी, रोजमेरी और अजवाइन जैसी अन्य जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं। कई तरह की जड़ी-बूटियों में से एक खास नाम सेज का भी आता है, जिसे आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सेज मूल रूप से भूमध्यसागरीय क्षेत्रों और मध्य पूर्व में पाया जाता है, लेकिन अब यह दुनिया भर में उगाया और इस्तेमाल किया जाता है। इसके औषधीय उपयोग प्राचीन समय से ही किए जाते रहे हैं और आधुनिक विज्ञान भी इसके फायदों को स्वीकार करता है। अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, सेज में ऐसे कई गुण होते हैं जो रोगों के उपचार में सहायक हैं। इसका इस्तेमाल दौरे पड़ने, अल्सर, गठिया, सूजन, चक्कर आना, कंपन, लकवा, दस्त और रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने जैसे रोगों में किया जाता है। कुछ शोध बताते हैं कि सेज के अर्क में कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने की क्षमता भी होती है, विशेषकर ब्रेस्ट कैंसर में। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर में सूजन से जुड़ी समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं। सेज एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी है, जो फ्री रेडिकल्स को बेअसर करके कोशिकाओं को क्षति से बचाता है।
इसमें पाया जाने वाला रोसमारिनिक एसिड पेट के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी के रूप में काम करता है, गैस्ट्रिक स्पाज्म को कम करता है और दस्त तथा गैस्ट्र्रिटिस के जोखिम को घटाता है। इसके सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होता है और गैस, पेट फूलना, पेट दर्द और अपच जैसी समस्याओं में राहत मिलती है। इसके एंटीबैक्टीरियल गुण दांतों में प्लाक बनने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने में भी सहायक होते हैं और मसूड़ों की सूजन को कम करते हैं। सेज में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे यह वजन घटाने में भी सहयोगी बन सकता है। हालांकि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। कुछ लोगों में इससे एलर्जी या त्वचा की संवेदनशीलता भी हो सकती है।