नई दिल्ली । दुनिया के साथ ही भारत के आसपास का सामरिक माहौल लगातार बदल रहा है। बांग्लादेश लगातार चीन को निवेश के लिए अपने यहां आमंत्रित कर रहा है। इन सबके बीच चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को अंजाम देने में जुटा है। लेह-लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन बेतुके दावे करता है। चीन सीमाई इलाकों में लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है, ऐसे में भारत भी पीछे नहीं है। अब नई दिल्ली ने भी एलएसी से लगे इलाकों में मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। चीन बॉर्डर से लगे क्षेत्र में चौथा एयरस्ट्रिप यानी हवाईपट्टी जल्द ही तैयार हो जाएगी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस साल अक्टूबर महीने से यह एयरस्ट्रिप ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाएगा। उसके बाद यहां राफेल से लेकर सुखोई 30केआई जैसे मॉडर्न फाइटर जेट लैंड कर सकेंगे। कुछ दिनों पहले ही लद्दाख में आकाश प्राइम मिसाइल डिफेंस सिस्टम की टेस्टिंग की गई थी। अब न्योमा एयरबेस को लेकर नया अपडेट सामने आया है। चीन से सटे सीमावर्ती इलाकों में सैन्य बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर भारत रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम लद्दाख के न्योमा में बन रहे एयरबेस का काम इस साल अक्टूबर तक पूरा कर लेगा जबकि अगले पांच सालों में हिमालयी क्षेत्र में स्थित इंडियन आर्मी की सभी अग्रिम चौकियों तक सड़क कनेक्टिविटी पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने बताया कि पूर्वी लद्दाख के न्योमा में एयरबेस पर पिछले साल कच्ची धूलभरी पट्टी को पक्की रनवे में बदला था। अब अक्टूबर 2025 तक बाकी का काम पूरा हो जाएगा। यह एयरबेस लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल एलएसी से महज 30 किमी दूर स्थित है और समुद्र तल से करीब 13,700 फीट की ऊंचाई पर है, जहां सर्दियों में तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। ऐसे में यहां का पूरा निर्माण कार्य अत्यधिक ठंडे मौसम के मुताबिक किया जा रहा है।
न्योमा एयरबेस से विमान टेकऑफ और लैंडिंग के साथ ही मामूली मरम्मत कार्य भी किए जा सकेंगे। इसके अलावा यहां भारतीय वायुसेना के जवानों के लिए रडार स्टेशन और ठहरने की सुविधाएं भी की जा रही है। इस एयरबेस के सक्रिय होने के बाद लद्दाख में भारतीय वायुसेना का यह चौथा सक्रिय ठिकाना होगा। वर्तमान में लेह, कारगिल और सियाचिन के लिए आधार बने थोइस में पूर्ण हवाई पट्टियां हैं, जबकि दौलत बेग ओल्डी जैसे क्षेत्रों में केवल विशेष अभियानों के लिए सीमित सुविधाएं मौजूद हैं। बीआरओ के महानिदेशक के मुताबिक आने वाले पांच सालों में ऐसा कोई अग्रिम इलाका नहीं बचेगा जहां तक सड़क से सेना को तैनात न किया जा सके। मौजूदा समय में लद्दाख और उत्तर-पूर्व के कई दुर्गम क्षेत्रों में सेना के जवानों को केवल पैदल चलकर पहुंचना होता है, लेकिन अब ऐसे सभी फॉरवर्ड पोस्ट को सड़क नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है।
लेफ्टिनेंट जनरल श्रीनिवासन ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश में बीआरओ दो प्रमुख हाईवे बना रही है, जो राज्य की सभी घाटियों को आपस में जोड़ देंगे। यहां विषम भूगोल और भारी बारिश से निर्माण कार्य चुनौतीपूर्ण है। इसके साथ ही शिंकुन ला टनल पर भी तेजी से काम चल रहा है। यह दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग होगी और हिमाचल प्रदेश को लद्दाख से सालभर जोड़ने वाली तीसरी मुख्य सड़क होगी। रणनीतिक रूप से यह सुरंग भारतीय सेना के लिए अहम होगी, क्योंकि यह मौजूदा जोजिला और रोहतांग मार्गों पर मौसमजनित निर्भरता को कम करेगी।
बता दें इस पूरी योजना को चीन के साथ मौजूदा सीमा तनाव के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। जहां चीन ने एलएसी के उस पार तेज गति से सड़क और हवाई बुनियादी ढांचे का विकास किया है, भारत अब उसी रफ्तार से इन मोर्चों पर प्रतिस्पर्धा करता दिख रहा है। न्योमा एयरबेस और हिमालयी चौकियों तक संपर्क बढ़ाने की यह कवायद भारत की सामरिक ताकत को न केवल मजबूती देगी, बल्कि सीमाई क्षेत्रों के विकास को भी गति देगी।